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उपमिति भव-प्रपंच-कथा
रागकेसरी के पास बैठे हुए दिखाई देते हैं, वे रागकेसरी के घनिष्ठ एवं अन्तरंग मित्र हैं और जिनको उसने अपनी शक्ति से स्वशरीर से अभिन्न बना दिया है । वे तीनों पुरुष ध्यान पूर्वक देखने-समझने योग्य हैं । वे कौन-कौन हैं ? बताता हूँ । [३१२–३१३] इन तीनों में से प्रथम अतत्त्वाभिनिवेश नामक श्रेष्ठ पुरुष है । कतिचित् विद्वान् प्राचार्य इसे दृष्टिराग के नाम से भो कहते हैं । हे भेया ! यह भाई भिन्नभिन्न मतवालों (तीथिकों) में अपने-अपने दर्शन के प्रति अत्यन्त आग्रह उत्पन्न कराता है | यह ग्रह इतना दुराग्रह पूर्ण हो जाता है कि एक बार हो जाने पर छू बहुत ही कठिन होता है । [३१४-३१५ ]
ना
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प्रकर्ष ! इस दूसरे पुरुष का नाम भवपात है । कतिचित् प्राज्ञ इसे स्नेहराग के नाम से प्रतिपादन करते हैं । यह भवपात प्राणियों में धन, स्त्री, पुत्र, पुत्री. सगे सम्बन्धी परिवार और अन्य वस्तुओं के प्रति अतिशय मूर्च्छा उत्पन्न करता है और उसके मन को इनके साथ गाढ बन्धन से बांध कर रखता है । [३१६-३१७]
तीसरे पुरुष का नाम अभिष्वंग है । कतिपय श्राचार्य इसी को विषयराग या कामराग भी कहते हैं । भैया ! यह लोक में अनेक प्रकार की उद्दाम लीलाएं करता हुआ भ्रमण करता है और शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के प्रति प्राणियों में लोलुपता उत्पन्न करता है । [३१८ - ३१९]
प्रकर्ष ! मैं तो ऐसा मानता हूँ कि इन तीनों मित्रों की शक्ति से ही रागकेसरी राजा ने सम्पूर्ण जगत को प्राक्रान्त कर रखा है । इस रागकेसरी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण त्रैलोक्य को अपने पाँव के नीचे दबा रखा है । यह इतना अधिक वीर्यवान और पराक्रमी है कि सन्मार्ग रूपी मदमस्त हाथी के कुम्भस्थल को भेदने में यह पूर्ण समर्थ है, इसीलिये इसका नाम रागकेसरी यथा नाम तथा गुण सफल हुआ है । [३३०-३२१]
रागकेसरी की भार्या मूढता
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हे भैया ! सिंहासन पर उसके साथ जो स्त्री बैठी है वह रागकेसरी की लोक- प्रसिद्ध पत्नी मूढता है । जो-जो गुण उसके पति में हैं वे सभी गुण मूढता में भी पूर्णरूपेण विद्यमान हैं। जैसे शंकर पार्वती को श्रद्ध - नारीश्वर के रूप में) अपने आधे अंग में समा कर रखते हैं, ठीक वैसे ही यह रागकेसरी भी अपनी पत्नी को अपने अर्धांग शरीर के रूप में ही रखता है । जैसे इन दोनों का श्रन्योन्याश्रित रूप से शरीर अभिन्न है वैसे ही इनके समस्त गुण भी अभिन्न हैं । [ ३२३-३२५]
गजेन्द्र
प्रकर्ष ! रागकेसरी के बांयी तरफ महामोह महाराजा के दूसरे पुत्र और रागकेसरी के भाई द्वेषगजेन्द्र बैठे हैं, इन्हें तू पहचानता भी है । इनमें भी इतने
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