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प्रस्ताव ४ : महामूढता, मिथ्यादर्शन, कुदृष्टि
४६७ गये हैं। हे विशालाक्षि ! आपको बहुत कष्ट हुना, अब आप विश्राम करें और संसारी जीव को कहें कि यह अपनी आगे की आत्मकथा सुनावे । भाई संसारी जीव! विचक्षणसूरि अपना जो चरित्र नरवाहन राजा के समक्ष सुना रहे थे और जिसमें अभी विमर्श-प्रकर्ष की बात चल रही थी. उसे अब आप आगे सुनाइये । [१५०-१५८]
संसारी जीव ने अपनी आत्मकथा आगे सुनाना प्रारम्भ किया।
१२. महामूढता, मिष्टयादर्शन, कुदृष्टि
विचक्षणसूरि ने नरवाहन राजा के समक्ष धर्मसभा और रिपुदारण को सुनाते हए कहा कि उस समय संसारी जीव ने अपनी आत्मकथा आगे बढ़ाते हुए कहा-हे विमललोचने ! विमर्श ने जो प्रतिपादित किया उसे मैं सुनाता हूँ। [१५६-१६०]
- मामा विमर्श ने भाणजे प्रकर्ष से कहा-भाई प्रकर्ष ! अब तुम्हें नदी प्रादि का गूढार्थ पूर्णतया समझ में आ गया होगा? बोलो, और भी स्पष्टता करने की आवश्यकता है क्या ? [१६१]
प्रकर्ष- मामा ! प्रमत्तता नदी आदि सबके बारे में मैं समझ गया है। इनके नाम और गुण सब मेरे लक्ष्य में आ गये हैं। अब आप मुझे मोहराजा के समस्त परिवार का परिचय कराइये । इन सब के समक्ष राज-सिंहासन पर जो सुन्दर पौर मोटी स्त्री बैठी है, इसका नाम क्या है और इसमें कौन-कौन से गुण हैं ? [१६२-१६३] देवी महामूढता
. विमर्श--यह पृथ्वीपति महामोह महाराजा को जगत्प्रसिद्ध गुणों की भण्डार सौभाग्यवतो महारानी महामूढता है । जैसे चन्द्र से चन्द्रिका और सूर्य से प्रकाश अलग नहीं रहते वैसे ही यह महारानी अपने स्वामी से अलग नहीं रहती। इन दोनों का शरीर एक ही है अर्थात् योदोनों अभिन्न हैं। इसीलिये मोह राजा के जो गुण पहले वर्णन किये हैं वे सभी विशेष रूप से इसमें भी विद्यमान हैं। [१६४-१६६] सेनापति मिथ्यादर्शन : महत्ता
प्रकर्ष–अच्छा मामा ! यह तो मैं समझा । अब यह बताओ कि महाराज के पास ही जो कृष्णवर्णी (कालाकीट) और भयंकर प्राकृति वाला राजपुरुष बैठा है मौर जो समस्त सभासदों को टेढी नजर से देख रहा है, वह राजा कौन है ? [१६७-१६८]
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