________________
उपमिति भव-प्रपंच कथा
विमर्श -- यह समस्त राज्य का नायक महामाह महाराज का प्रख्यात मुख्यमंत्री या सेनापति मिथ्यादर्शन है । महाराजा के सम्पूर्ण राज्य पर यही शासन करता है अर्थात् राजतन्त्र यही चलाता है । हे भद्र ! यहाँ बैठे हुए अन्य राजाओं को भो यही शक्ति प्रदान करता है । यह अन्तरंग प्रदेश में रहकर भी बाह्य प्रदेश के प्राणियों में अपनी शक्ति से निम्न परिवर्तन करता है - उसे ध्यान पूर्वक समझ लो । [१६६ -१७१]
४६८
अदेव को देव : देव को प्रदेव
जो देव नहीं उसमें देवत्व की बुद्धि उत्पन्न करता है, अधर्म में धर्म की मान्यता उत्पन्न करता है, प्रतत्त्व में स्पष्टतः तत्त्व की बुद्धि जागृत करता है, अपात्र या कुपात्र में पात्रता का आरोप करता है, जहाँ लेशमात्र भी गुरण न हो वहाँ गुणों का भण्डार बताता है और संसार बढ़ाने के हेतुओं को मोक्ष के हेतु होने की भ्रांति कराता है । [ १७२ - १७६]
यह मिथ्यादर्शन ऐसे आश्चर्यजनक कार्य कैसे सम्पादित करता है, यह भी थोड़ा विस्तार से बताता हूँ ।
जो हंसने, गाने, हास्य-विनोद, नाटक आदि प्राडम्बरों में तल्लीन रहते हैं, जो स्त्रियों के कटाक्ष-विक्षेप के वशीभूत हो जाते हैं, जो अपना आधा शरीर ही स्त्री ( अर्ध- नारीश्वर ) का बना लेते हैं, जो कामान्ध होते हैं, जो पर- स्त्री में श्रासक्त रहते हैं, जो निर्लज्ज होते हैं, जो क्रोध से भरे हुए हैं, जो शस्त्र धारण करते हैं, जो देखने में ही भयंकर लगते हैं, जो शत्रु को मारने में तत्पर रहते हैं, शाप और आशीर्वाद देने के माध्यम से जिनके चित्त कलुषित रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों (देवों) का यह मिथ्यादर्शन सर्वोत्तम देव के रूप में स्थापित करवाता है । इसके विपरीत जो राग-द्वेष से रहित हैं, जो सर्वज्ञ हैं, जो शाश्वत सुख और ऐश्वर्य को अनन्त काल तक भोगने वाले हैं, * प्रत्यन्त क्लिष्ट कर्मरूपी मैल का जिन्होंने सर्वथा नाश कर लिया है, जो सर्व प्रकार के प्रपञ्चों से रहित हैं. जो महाबुद्धिशाली हैं, जिनका क्रोध सर्वथा शान्त हो गया है, झूठे आडम्बरों से रहित हैं, जो हास- विलास स्त्री और अस्त्र-शस्त्रों से रहित हैं, जो आकाश के समान निर्मल और स्वच्छ हैं, जो धैर्यवान, शान्त और गम्भीर हैं, जो महान भाग्यशाली हैं, जो समस्त प्रकार के अशिवकारी उपद्रवों से रहित हैं, जो न किसी को शाप देते हैं और न किसी को आशीर्वाद देते हैं, फिर भी जो प्राणियों को शिवपद (मोक्ष) प्राप्त करवाने में काररणभूत हैं, जो मन, वचन और कायिक दृष्टि से विशुद्ध शास्त्रों का उपदेश देने वाले हैं, जो परम ऐश्वर्यवान (परमेश्वर) हैं, जो समस्त देवताओं के भी पूज्य हैं, जो समस्त योगियों द्वारा भी ध्यान करने योग्य है, जिनकी प्राज्ञा का अनुसरण और प्राराधना करने से सदानन्दमय निर्द्वन्द्व विशुद्ध सुख की प्राप्ति होती है, ऐसे वास्तविक और सच्चे देव को यह ऋ पृष्ठ ३६०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org