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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा मोह के शिकंजे में जकड़ा व्यक्ति, अपने यथार्थ स्वरूप के ज्ञान से विमुख हो जाता है। और जब, उसका विवेक जागता है, तब मोह पराजित हो जाता है। इसी के बाद व्यक्ति को शाश्वत ज्ञान प्राप्त होता है । 'विवेक के साथ उपनिषद् के अध्ययन और विष्णु-भक्ति के आश्रय से ज्ञानचन्द्र का उदय होता है'--इस मान्यता की विवेचना, प्रस्तुत नाटक में, युक्तिपूर्ण सौन्दर्य के साथ की गई है। द्वितीय अङ्क में, हास्य और दम्भ के वार्तालाप से, हास्य रस का सार्थक चित्रण किया गया है । जैन, बौद्ध और सोम-सिद्धान्त के परस्पर वार्तालाप में स्फुटित हास्य-मिश्रित कौतूहल द्रष्टव्य है। श्रीकृष्ण मिश्र उपनिषदों के रहस्यवेत्ता रहे, तभी, उन्होंने अद्वैत वेदान्त और वैष्णव धर्म का जो समन्वय, इस नाटक में प्रस्तुत किया है, वह इसकी एक महनीय विशेषता है। कवित्व का चमत्कार भी इस नाटक में जमकर निखरा है । पात्रों की सजीवता प्रशंसनीय बनी है। हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों की रचनाओं पर 'प्रबोधचन्द्रोदय' का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है । रामचरितमानस में, पञ्चवटी के वर्णन-प्रसङ्ग में जो आध्यात्मिक रूपक योजना है, उसमें इस नाटक के पात्रों को भी अपनाया गया है। हिन्दी जगत के ही प्रसिद्ध कवि केशव (१६वीं शती) ने 'विज्ञान गीता' नाम से इसका छन्दोबद्ध अनुवाद कर डाला। अध्यात्म विद्या और अद्वैतवाद जैसे शुष्क दार्शनिक विषय को भी नाटकीय और मनोरञ्जक शैली में प्रस्तुत करना, श्रीकृष्ण मिश्र के प्रयास की सर्वोत्तमता को असंदिग्ध बना देता है। __ अपभ्रंश-प्राकृत की रचना 'मयणपराजयचरिउ, भी रूपकात्मक शैली पर लिखी गई महत्त्वपूर्ण कृति है। इसके प्रणेता, चंगदेव के पुत्र हरदेव हैं। इसका रचनाकाल यद्यपि सुनिश्चित नहीं हो पाया, तथापि, इसकी रचना यशपाल की कृति 'मोहराज-पराजय' से पहिले की जा चुकी थी । नागदेव रचित 'मदनपराजय' (संस्कृत) इसी प्राकृत रचना के आधार पर लिखी गई है। ___ 'मोहराज-पराजय' नाटक, यशपाल की महत्त्वपूर्ण रचना है। यशपाल, चक्रवर्ती अभयदेव का राज्य-कर्मचारी था। अभयदेव ने १२२६ से १२३२ ई. तक राज्य किया था । घारापद के कुमारविहार में, यह नाटक अभिनीत भी हुआ था । इसके प्रथम अङ्क में, मोहराज, राजा विवेकचन्द के मानस नगर को घेर कर आक्रमण कर देता है। फलतः, विवेकचन्द, अपनी पत्नी शान्ति और पुत्री कृपासुन्दरी के साथ निकल भागता है । पंचम अंक में, मोहराज को पराजित कर, पुनः विवेकचन्द सिंहासनासीन होते हैं । नाटक में, ऐतिहासिक नामों के साथ लाक्षणिक चरित्रों के सम्मिश्रण में, और मोहराज-पराजय की वर्णना में, नाटककार की कुशलता और १. भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित । २. गायकवाड़ सीरीज, बड़ौदा से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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