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________________ प्रस्ताव ४ : भौताचार्य कथा विमर्श - तुझे जो कुछ पूछना है, प्रसन्नता से प्रकर्ष देखो मामा ! आपने सबसे पहले चित्तवृत्ति प्रटवी का वर्णन किया और कहा कि यह समस्त अन्तरंग लोक की आधारभूत है तथा बहिरंग लोक में जितनी भी अच्छी-बुरी घटनायें घटती हैं उन सब का निर्माण करवाने वाली यही टवी है । यह बात तो रहस्य ( भावार्थ ) के साथ मेरी समझ में आ गई । तदनन्तर प्रापने प्रमत्तता महानदी, तद्विलसित द्वीप, चित्तविक्षेप मण्डप, तृष्णा वेदिका, विपर्यास सिंहासन, अविद्या शरीर और महामोह राजा का जो वर्णन किया है उसका रहस्य मैं सम्यक् प्रकार से नहीं समझ सका हूँ । यद्यपि गहन विचार करने पर मेरी कल्पनानुसार ऐसा लगता है कि ये बस नाम से ही भिन्न हों, पर अर्थ से तो वे सब एक समान ही हैं । क्योंकि, ये ग्रन्तरंग लोक की पुष्टि करने वाले और बहिरंग लोक का अनर्थ कराने वाले लगभग एक समान ही हैं । फिर भी यदि इनमें कोई अर्थ-भेद हो तो कृपाकर आप मुझे समझाइये | 1 पूछ 1 विमर्श - भाई ! जब मैंने इनमें से प्रत्येक के सम्बन्ध में गुण-स्वरूपों का वर्णन किया था तभी इनमें क्या-क्या अन्तर है, इसका भी स्पष्टता पूर्वक विवेचन कर तुझे समझाया था । फिर भी यदि तु वास्तविकता ठीक से समझ में न आई हो तो मैं पुनः अर्थ सहित समझाता हूँ । ऐसा कहकर विमर्श ने नदी द्वीप आदि प्रत्येक का भावार्थ विस्तार पूर्वक भारगजे प्रकर्ष को कह सुनाया, जिससे उसे प्रत्येक की वास्तविकता स्पष्टता पूर्वक समझ में आ गई | ४८३ ११. वेल्लहल कुमार कथा नरवाहन राजा ने विचक्षरणाचार्य से कहा - महाराज ! विमर्श ने अपने भानजे प्रकर्ष को नदी आदि का जो भावार्थ (रहस्य) बताया, वह सब आप हमें भी सुनाइये । राजा का प्रश्न सुनकर विचक्षणाचार्य ने महानदी आदि का भावार्थ विस्तार से कह सुनाया । इधर अगृहीतसंकेता ने संसारी जीव से कहा-भद्र संसारी जीव ! महानदी आदि का भावार्थ मेरे समझने योग्य हो तो उस अर्थभेद (रहस्य) को मुझे भी सुनाइये | Jain Education International - संसारी जीव - बिना किसी स्पष्ट दृष्टान्त के प्रत्येक का भिन्न-भिन्न स्वरूप समझाना बहुत कठिन है, अतः पहले दृष्टान्त देकर फ़िर मैं इनके भावार्थ को समझाऊंगा | * पृष्ठ ३४६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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