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________________ उपमिति भव- प्रपंच - कथा गृहीत संकेता ने आभार पूर्वक उसका प्रस्ताव स्वीकार किया, अतः संसारी जीव ने पहले दृष्टान्त कथा प्रारम्भ की - ४८४ वेल्लहल कुमार कथा भुवनोदर नामक एक नगर था । नगर की प्राकृतिक रचना ही ऐसी थी कि संसार में होने वाली सभी घटनायें उस नगर में भी होतो रहती थीं । उस नगर में अन।दि नामक राजा राज्य करता था । वह इतना शक्तिशाली था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसी समर्थ हस्तियों को भी पराजित कर, वह अपने वश में रख सकता था। इस अनादि राजा की रानी का नाम संस्थिति था । वह नीति-निपुण थी और सच्ची-झूठी युक्तियों से मिथ्या बोलने वाले का नाश करने में कुशल थी । इन राजा-रानी के एक अत्यन्त वल्लभ वेल्लहल नामक पुत्र था । यह कुमार खाने-पीने का इतना शौकीन था कि वह रात-दिन भिन्न-भिन्न प्रकार के खाद्य और पेय पदार्थों का भक्षरण और पान करता ही रहता था तब भी उसे कभी तृप्ति नहीं होती थी । अधिक खाने-पीने से उसे अजीर्ण हो गया, पेट के दोष बढ गये और फिर उसे जीर्ण-ज्वर हो गया । अत्यन्त रुग्ण होने पर भी इस कुमार को खाने-पीने की इच्छा थोड़ी भी कम नहीं होती थी । एक दिन उसकी इच्छा बगीचे में गोठ करने की हुई । गोठ के लिये विविध प्रकार के भोजन तैयार कराये गये । तैयार भोजन-सामग्री को देख-देख कर कुमार का मन ललचाने लगा । मन में सोचने लगा कि मैं इस - इस खाद्य को खाऊंगा ; क्योंकि सभी पदार्थ उसे रुचिकर थे, इसलिये सब में से थोड़ाथोड़ा कुमार ने नमूना चख लिया । फिर अपने मित्र मण्डल, परिवार और अन्तःपुर की सुन्दरियों सहित वे लोग उद्यान की ओर निकल पड़े । मार्ग में भाट लोग कुमार का गुणगान करने लगे, उन्हें दान देते हुए, प्राडम्बर पूर्वक विविध प्रकार के आमोदप्रमोद करते हुए वे लोग मनोरम उद्यान में पहुँचे । उद्यान में पहुँचने के बाद मित्रों के साथ कुमार भी आसन पर बैठे और लाई हुई भोजन सामग्री में से थोड़ी-थोड़ी सभी वस्तुएं उसे भी परोसी गईं। इनमें से प्रत्येक वस्तु कुमार ने थोड़ी-थोड़ी खाई । उस समय जंगल की ठण्डी हवा भी उसे लगने लगी, इससे उसका ज्वर अधिक तेज हो गया । वैद्यक शास्त्र में कुशल समयज्ञ नामक वैद्यपुत्र भी उनके साथ था । उसने कुमार के ललाट पर हाथ लगाकर और नाड़ी देख कर यह निर्णय कर लिया कि कुमार का ज्वर बढ गया है और उसे पीड़ा हो रही है, पर लज्जा के मारे वह बोल नहीं रहा है । 1 समयज्ञ ने कुमार से कहा देव ! आपको अब कुछ भी नहीं खाना चाहिये । यदि आप अब कुछ भी खायेंगे तो आपको बहुत हानि होगी । देखिये, अभी भी श्रापका शरीर भीतर से ज्वर की प्रबलता के कारण धधक रहा है । प्राकृति से स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि आपकी आँखें लाल चोल हो गई हैं, मुँह भी तप्त ताम्र * पृष्ठ ३५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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