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प्रस्ताव ४ : चित्तवृत्ति अटवी
४७७ सुख-सन्दोह देने वाली एकाग्रता का नाश कर देता है । बेचारे भाग्यहीन बाहर के व्यक्ति यह नहीं जानते कि इस मण्डप में कितनी अधिक उच्छेदक शक्ति है, इसीलिये मोहाभिभूत होकर वे पुनः-पुन : इस मण्डप में प्रवेश करते हैं । जो कतिपय पुण्यशाली प्राणी इस मण्डप की उच्छेदक शक्ति को पहचानते हैं वे दुबारा इस मण्डप में कभी प्रवेश नहीं करते । ऐसे भाग्यशाली प्राणी तो अपने चित्त में अपूर्व शान्ति धारण कर, एकाग्रता का आश्रय लेकर इसी जन्म में सतत आनन्द का अनुभव करते हैं। हे भद्र ! इस चित्तविक्षेप मण्डप की ऐसी अद्भुत यौगिक शक्ति का गुण-वर्णन पूर्ण हमा। अब मैं वेदिका का वर्णन करता हूँ, सुनो। [२६-३७] तृष्णा वेदिका
इस मण्डप के मध्य में एक वेदिका (मंच) महामोह महाराजा के लिये बनायी गयो है जो विश्व में तृष्णा के नाम से प्रसिद्ध है । अतएव भद्र ! तू इसे ध्यान पूर्वक देख । महाराजा के कुटुम्ब परिवार के सभी लोगों को इस मंच पर प्रवेश मिला हुआ है। महाराजा की सेवा करने वाले अन्य राजा तो सभा-मण्डप के आसपास भिन्न-भिन्न स्थानों पर बैठे हैं, किन्तु मोहराजा का परिवार तो मंच पर ही बैठा हुआ है । भैया ! यह मंच तो प्रकृति (स्वभाव) से ही मोह राजा और उसके परिवार को विशेष रूप से अत्यधिक प्रिय है। इस मंच पर बैठकर मोह राजा जब गर्वाभिभूत होकर सब लोगों पर पुनः-पुनः दृष्टिपात करते हैं तब मन में ऐसे हर्षित होते हैं मानो उनके सर्व कार्य सिद्ध हो गये हों। यह मंच महामोह राजा के पूरे परिवार को अपने ऊपर बिठाकर अपने स्वभाव से ही उन सब को प्रसन्न रखता है । भद्र ! यदि बाहर के लोग इस मंच पर आकर बैठ जाय तो उनका क्या हाल हो, यह तो कहने की भी आवश्यकता नहीं है। उनका दीर्घ (आत्मिक) जीवन नष्ट हो जाता है। भैया ! बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि यह तृष्णा वेदिका (मंच) यहाँ रह कर भी अपनी शक्ति से सम्पूर्ण संसार को चक्र पर चढ़ाती है और सब को भ्रमित करती है । हे भद्र ! यथार्थ नामधारक इस तृष्णा वेदिका का स्वरूप बतलाया, अब मैं सिंहासन के गुण-दोषों का वर्णन करता हूँ, उसे तू सुन । [३८-४६] विपर्यास सिंहासन
इस तृष्णा मंच पर विपर्यास नामक सिंहासन रखा हा है। विधि ने इसका निर्माण निश्चित रूप से महामोह महाराजा के लिये ही किया है । मोहराजा को लोक-विख्यात विशाल राज्य और समृद्धि प्रादि अन्य जो कुछ भी प्राप्त है उसका कारण यह सिंहासन ही है। मेरी मान्यता है कि जब तक महामोह राजा के पास यह श्रेष्ठ सिंहासन है, तभी तक उसका राज्य और राज्य-समृद्धि है । जब तक ये महाराजा इस सिंहासन पर बैठे हैं तब तक उनके सभी शत्रु एकत्रित होकर अकेले उन पर हमला करें तो भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते, अर्थात् शत्रुओं के लिये * पृष्ठ ३४५
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