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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
अगम्य हो जाते हैं । किन्तु, जब ये महाराजा इस सिंहासन से उतरकर अन्य स्थान पर बैठ जाय तो एक निर्बल पुरुष भी उन्हें जीत सकता है । भद्र ! बाहर के लोगों द्वारा इस सिंहासन की ओर दृष्टिपात करने मात्र से वे महान् अनर्थों, भयंकर विपत्तियों और अनेक कठिनाइयों में फंस जाते हैं । जब तक बाहर के लोग इस सिंहासन की तरफ दृष्टिपात नहीं करते तभी तक उनकी सुन्दर बुद्धि अच्छे मार्ग पर प्रवृत्त होती है। यदि उनकी एक बार भी सिंहासन पर दृष्टि पड़ जाती है और मन उसके प्रति आकृष्ट हो जाता है तब तो प्राणी महा पापिष्ठ-वृत्ति और व्यवहार वाले बन जाते हैं । ऐसी अवस्था में उनके पास प्रशस्त बुद्धि रह भी कैसे सकती है ? पहले जिस नदी, द्वीप, मण्डप और मंच का वर्णन किया गया है उन सब की सम्मिलित शक्ति इस सिंहासन में समाई हुई है। भद्र ! विपर्यास सिंहासन के गुण-दोष का स्वरूप मैंने बता दिया । ४७-५५] महामोह राजा
भाई प्रकर्ष ! अब इस सिंहासन पर बैठे हुए महामोह राजा के गुणगौरव का वर्णन ध्यान पूर्वक सुनो । इन महाराजा का शरीर अविद्या से बना हुआ है। यद्यपि वृद्धावस्था के कारण वह जीर्ण कपोल वाले हो चुके हैं तथापि त्रिभुवन में विख्यात हैं । भैया ! इनका यह जीर्ण शरीर भी अपनी शक्ति से त्रिभूवन में क्या-क्या कर सकता है, सुनो। यह अनित्य वस्तुओं में नित्यता का भान कराता है, अपवित्र वस्तुओं को महा पवित्र और शुद्ध मनवाता है, दुःख से परिपूर्ण वस्तुओं को सुख रूप बतलाता है, अनात्म वस्तुयों में आत्मा का रूप प्रतिपादित करवाता है, शरीर आदि पुद्गल स्कन्धों में ममता उत्पन्न करवाता है और ऐसे भाव उत्पन्न करवाता है मानों वह उनका अपना ही हो । पर-वस्तुओं में अपनेपन की बुद्धि उत्पन्न कर प्राणी को परभाव में इतना आसक्त कर देता है कि प्राणो अपने (आत्म) स्वरूप को भूलकर अनर्थकारी क्लेशों को प्राप्त करता है । मोहराजा का यह अविद्या शरोर वृद्धावस्था से * इतना जीर्णशीर्ण होने पर भी तेज से देदीप्यमान है, इसोलिये इसे महाबली कहा जाता है । भद्र ! यह राजेन्द्र सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति करने वाला होने से प्राज्ञजनों ने इस महामोह को पितामह का नाम दिया है, अर्थात् यह महामोह दादा या महामोह पितामह के नाम से पहिचाना जाता है । इसकी शक्ति इतना अचिन्त्य है कि शिव, विष्णु, शेषनाग, इन्द्र, चन्द्र और विद्याधर तथा ऐसी ही अन्य बड़ी-बड़ी हस्तियाँ भो इस दादा की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकतीं। अहा ! जो महामोह दादा अपनी शक्ति रूपी डण्डे से कुम्हार की भाँति इस जगत् रूपी चाक को घुमा कर भिन्न-भिन्न कार्यरूपी बर्तन खेल-खेल में बना सकता है उस अचित्य शक्ति वाले महामोह राजा की आज्ञा का अपमान करने या उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने में दुनिया में कौन समर्थ हो सकता है ? भाई प्रकर्ष ! इस प्रकार मैंने तुम्हारे सामने
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