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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
अधिक क्या कहूँ ? संक्षेप में कहूँ तो जगत में तू सचमुच धन्य है; क्योंकि तुझे ऐसा महाभाग्यशालो सुन्दर कुटुम्ब प्राप्त हुअा है । पुत्र ! अभी-अभी तेरा रसना से परिचय हुआ जानकर हमें इसलिये चिन्ता हुई है कि हमारे दृष्टिकोण से यह स्त्री किसी भी प्रकार से तेरे योग्य नहीं हैं । कहीं यह रसना सौत बनकर मात्सर्य से बुद्धिदेवो का नाश करने वाली और अपनी सौत के पुत्र प्रकर्ष की प्रगति में बाधक न बन जाए, इसी कारण हम चिन्तातुर हो गये हैं । अब कालक्षेप (समय बिताने) से क्या लाभ ? प्रस्तुत कार्य को पूरा करने की तैयारी करो। रसना की मूलशुद्धि का पता लगने पर जैसा योग्य लगेगा वैसा कर लिया जावेगा । प्रकर्ष को उसके मामा से स्नेह है, अतः उसे मामा के साथ भेजने का निर्णय किया वह भी ठीक ही है, यह तो खीर में खाँड मिलाने जैसा है। अब विमर्श और प्रकर्ष दोनों मामा भाणजा रसना की मुलशुद्धि की कार्यसिद्धि के लिये जावें । इस विषय में मैं समझता हूँ कि अब तुम्हें तनिक भी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। । १-१४]
विचक्षण और बुद्धिदेवी ने शुभोदय के वचन शिरोधार्य किये । विमर्श और प्रकर्ष ने सब के चरण छए, नमस्कार किया, यात्रा का सारा उचित कार्य पूरा किया और रसना देवी के मूल उत्पत्ति की सच्ची जानकारी का पता लगाने के लिये विदा हुए।
८. विमर्श और प्रकर्ष शरद् ऋतु का वर्णन
शरद् ऋतु का सुहावना समय है । पृथ्वी पर धान्य पक गया है। गोपालक एक साथ मिलकर रास गा रहे हैं। धान्य की प्रतीक्षा में आकुल प्रजा के लिये सुनहरा समय आ गया है । * गोपांगनायें (कृषक महिलायें, धान्य के खेतों की रक्षा में तत्पर हैं।
जलविहीन बादलों के झुण्ड के झुण्ड आकाश में दृष्टिगोचर हो रहे हैं। पृथ्वीतल श्वेत काश के घास से ढक गया है । भूमण्डल का मध्यभाग चन्द्रमा की शोतल एवं उज्ज्वल किरणें पड़ने से स्फटिक रत्न के कुम्भ जैसा देदीप्यमान हो रहा है।
कलहंसों के मीठे मधुर स्वर को सुनने के पश्चात् अब कान मोर के मधुर टहक के प्रति विरक्त (रसहीन) हो गये हैं। अब लोगों की दृष्टि कदम्ब के बड़े वृक्षों से हटकर पलास, (ढाक, खाखरे) के ऊँचे-नीचे वृक्षों में आसक्त हो रही है।
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