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________________ प्रस्ताव ४ : रसना और लोलता ४५६ आदर करने लगे । इस प्रकार उसने अपना कुछ समय रसना के साथ लीलापूर्वक व्यतीत किया । लोलता तेजस्वी विचक्षण के अभिलाषा-रहित हृदय के भावों को अच्छी तरह समझती थी इसलिये वह उससे किसी भी प्रकार की मांग करती ही नहीं थी। इस प्रकार विचक्षण लोलुपता-रहित रसना का पालन करता जिससे उसे किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता और वह निरन्तर आनन्द में रहता । क्योंकि, दुरात्मा जड़ को रसना के लालन-पालन में जो दोष और दुःख उत्पन्न हुए और भविष्य में होंगे उसका कारण यह लोलता ही है। विचक्षण यद्यपि रसना का पालनपोषण करता था किन्तु उसने लोलुपता को दूर भगा दिया था, इसलिये उसे किसी दोष या अनर्थ का भाजन नहीं बनना पड़ा। [१६-२५] जड़ की माता-पिता के साथ चर्चा ___ एक दिन तुष्टचित्त जड़ कुमार ने अपनी माता स्वयोग्यता और पिता अशुभोदय से रसना नामक स्त्री की प्राप्ति के बारे में सारा वृत्तान्त कहा । अपने पुत्र को लोलता दासी के साथ रसना जैसी वधू की प्राप्ति से उन्हें भी सन्तोष हुआ और स्नेहपूरित हृदय से उन दोनों ने जड़ से कहा-पुत्र ! अभी तेरे पुण्यकर्मों का उदय हुआ है जिससे तेरे ही अनुरूप योग्य भार्या की प्राप्ति हुई है। तूने इसका पालन-पोषण शुरू कर दिया है यह भी अच्छा किया। ऐसे सुन्दर मुख वाली तेरी यह पत्नी तुझे बहुत सुख देगी, इसलिये हे पुत्र ! तुझे इसका रात-दिन पालन-पोषण करना चाहिये । [२६-२६] जड़ कुमार पहिले ही रसना का लालन-पालन बहुत ही आसक्ति और ममता पूर्वक कर रहा था, उस पर उसके माता-पिता ने भी वैसी ही प्रेरणा दी अतः शेष क्या रहता ? जैसे कोई स्त्री पहले ही काम-वासना के उन्माद से परिपूर्ण हो और उस समय में मोर टुहकने लगे तो उन्मत्तता में क्या कमी रहे ? मूढात्मा जड़ कुमार अब प्रगाढ प्रासक्ति पूर्वक रसना का लालन-पालन करने लगा और उसे प्रसन्न रखने के लिये स्वयं अनेक प्रकार की विडम्बनाएँ सहन करने लगा। [३०-३१] विचक्षण की स्वजनों के साथ चर्चा विचक्षण कुमार ने भी एक दिन अपनी माता निजचारुता और पिता शुभोदय को रसना की प्राप्ति के सम्बन्ध में सब वृत्तान्त कहा । उस समय उसकी पत्नी बुद्धिदेवी, पुत्र प्रकर्ष और साला विमर्श भी साथ हो थे । उन सब ने भी रसना की प्राप्ति का वृत्त सुना। [३२-३३] ___शुभोदय ने कहा-पुत्र ! तुझे क्या समझाऊँ । तू तो स्वयं वस्तु-तत्त्व को समझता है, इसीलिये तेरा विचक्षण नाम सत्य ही है अर्थात् गुणानुरूप ही है, तथापि तुझे मेरे प्रति जो स्वभाव से ही आदर व सम्मान है उसी से प्रेरित होकर मैं तुझे दो बात कहता हूँ । नारी पवन के समान चञ्चल होती है, संध्याकाल के आकाश * पृष्ठ ३३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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