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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
या इनमें कलाकौशल की कमी है जिसे छिपाने के लिये ही सम्भवतः आपने कुछ बहाना बनाया है।
___ मैं (रिपुदारण)-सुन्दरी ! तुझे अपने मन में इनमें से एक भी विकल्प (कारण) नहीं समझना चाहिये, क्योंकि समस्त कलायें तो मेरे हृदय में समायी हुई हैं
और मेरे शरीर में उस समय कोई विशेष रोग इत्यादि उत्पन्न भी नहीं हुआ था। मेरे प्रति अन्धे मोह के कारण से मेरे माता-पिता ने उस समय व्यर्थ ही धूमधाम मचा दी थी। उनकी व्यर्थ की धांधली के कारण ही मैंने उस समय स्थिर होकर मौन धारण कर लिया, अर्थात् चुपचाप बैठा रहा ।*
इस बात को सुनकर नरसुन्दरी को दृढ़ विश्वास हो गया कि मैं वास्तविक बात को निश्चित रूप से छपा रहा हूँ। उसने मन में विचार किया, अहो ! ये तो प्रत्यक्ष में ही अपलाप कर रहे हैं, अर्थात् पूर्णतया झूठ बोल रहे हैं। अहो इनकी निर्लज्जता ! अहो इनकी धृष्टता ! अहो इनका झूठा आत्माभिमान ! अर्थात् ये अपने आपको कितना बड़ा समझते हैं ?
पुनः नरसुन्दरी ने कहा-आर्यपुत्र ! यदि ऐसी बात है तब तो बहुत ही आश्चर्य की बात है। मुझे अभी भी आपके मुख से कला-कलाप के स्वरूप को सुनने की प्रबल इच्छा है। यदि आप मुझ पर कृपा कर कलाओं के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन सुनायें तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।
नरसुन्दरी की उपरोक्त प्रार्थना को सुनकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि 'अहो ! इसे अपने पांडित्य का बहुत अभिमान हो गया लगता है, इसीलिये यह मेरा पराभव कर अपने समक्ष मुझे तुच्छ सिद्ध करने की इच्छा से ही मेरी हँसी उड़ा रही है।' इसी समय शैलराज ने अवसर देखकर गुप्त रूप से मुझ पर अपना प्रभाव जमाया और अपने हाथ से स्तब्धचित्त लेप का मेरे हृदय पर विलेपन कर दिया। लेप के प्रभाव में मैंने पुनः सोचा कि 'सचमुच यह पापिनी नरसुन्दरी अपने पांडित्य की छाप मुझ पर जमाने के लिये मेरा पराभव कर मेरी हँसो उड़ाने को तत्पर हुई है । ऐसी पापिन को अपने पास रखने से क्या लाभ ?' नरसुन्दरो का तिरस्कार
____ मैंने शैलराज के प्रभाव में आकर तत्क्षण ही अत्यन्त तिरस्कार पूर्वक नरसुन्दरी से कहा-अरे पापिनि ! मेरी दृष्टि से दूर हट जा । मेरे राजभवन से अविलम्ब बाहर निकल जा । अपने आप को पण्डित मानने वाली तेरे जैसी स्त्री को मेरे जैसे मूर्ख व्यक्ति के साथ रहना शोभा नहीं देता।
मेरे वचन सुनकर नरसुन्दरी एकाएक घबरा गई। उसने मेरे मुख के सामने देखा । पुनः उसने सोचा, धिक्कार है ! इनका मेरे प्रति पहले जो सद्भाव एवं प्रेम था वह अब नहीं है । प्रतीत होता है कि इस समय ये मानभट (अभिमान)
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