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३. नरसुन्दरी से लग्न शेखरपुर नगर में नरकेसरी राजा का राज्य था, जिसके वसुन्धरा नामक रानी थी, जिससे उन्को नरसुन्दरी नामक पुत्री हुई थी। वह विश्व को आश्चर्यचकित करने वाली, अदभुत रूपवती और विद्या कलाओं में प्रवीण थी । अनुक्रम से नरसुन्दरी युवावस्था को प्राप्त हुई। नरसुन्दरी की प्रतिज्ञा : माता-पिता की चिन्ता
इस नरसुन्दरी ने गर्वाधिक्य के कारण निश्चय किया था कि कला-कौशल में जो उससे अधिक विद्वान् हो, ऐसा कोई प्रवीण पुरुष मिलेगा तभी उसके साथ वह विवाह करेगी, अन्य किसी के साथ विवाह नहीं करेगी। अपना यह निश्चय उसने अपने पिता नरकेसरी को और अपनी माता वसुन्धरा को भी बता दिया था।
उसके माता-पिता मन में बहुत सोच-विचार करते थे कि विद्या-कला में इस पुत्री के समान गुण वाला भी कोई पुरुष मिलना बहुत कठिन है, तब फिर उससे अधिक प्रवीण पुरुष कैसे प्राप्त होगा ? इन्हीं विचारों से वे अपने मन में व्याकुल रहते थे।
में विद्याकला में बहत प्रवीण हो गया है, ऐसी मेरे द्वारा फैलाई गई मेरी प्रसिद्धि को उन्होंने भी सुना । नरकेसरी राजा ने सोचा कि सम्भव है रिपुदारण कुमार * मेरी पुत्री से अधिक विद्वान् हो ! फिर नरवाहन राजा के कुटुम्ब के साथ विवाह सम्बन्ध करना सर्व प्रकार से योग्य भी है, क्योंकि वे राजा श्रेष्ठ कुल के हैं और स्वयं मन के भी बड़े उदार हैं। नागराज के सिर पर जैसे एक ही मरिण होती है वैसे ही मेरे भी यह एक ही पुत्री है, इसलिये मेरा कर्त्तव्य है कि मैं इसका सम्बन्ध योग्य स्थान पर करू । फिर पुत्री पर अधिक प्रेम होने के कारण नरकेसरी राजा ने सोचा कि वह स्वयं अपनी इकलौती पुत्री को लेकर सिद्धार्थपुर नरवाहन राजा के यहाँ जाय और वहीं पर कुमार रिपुदारण की परीक्षा कर, उसके साथ नरसुन्दरी का विवाह कर जीवन में निश्चिन्त हो जाय । सिद्धार्थपुर में नरसुन्दरी
___नरकेसरी राजा अपनी पुत्री को लेकर अपनी सेना सहित सिद्धार्थपुर आये । अपने पहुँचने के समाचार नरवाहन राजा को पहिले ही भिजवा दिये थे। समाचार सुनकर राजा नरवाहन बहुत प्रसन्न हुआ। पूरा नगर ध्वजा-पताकाओं से सजाया गया और योग्य सत्कार एवं हर्ष पूर्वक बड़ी ही धूमधाम से नरकेसरी राजा का नगर प्रवेश करवाया गया तथा उनको ठहराने के लिये बहुत ही सुन्दर आवासस्थान की व्यवस्था की गई।
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