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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
विवेकाचार्य-राजन् ! यह पुरुष महामोह राजा का पौत्र है और द्वेषगजेन्द्र का पुत्र है । इसकी माता का नाम अविवेकिता है और इसका नाम वैश्वानर है। पहले जब इसका द्वषगजेन्द्र के घर अविवेकिता की कोख से जन्म हुआ तब इसका नाम क्रोध रखा गया था, पर बाद में जैसे-जैसे इसमें क्रोधात्मक गुणों की वृद्धि होती गई वैसे-वैसे इसके सम्बन्धियों ने इसका प्रिय नाम वैश्वानर रख दिया।
अरिदमन - भगवन् ! इस पुरुष के साथ जो दूसरी स्त्री प्राकृति बैठी है, वह कौन है ?
विवेकाचार्य-द्वषगजेन्द्र का सम्बन्धी दुष्टाभिसन्धि नामक एक राजा है, उसकी रानी निष्करुणता की यह पुत्री हिंसा है।
अरिदमन - इस नन्दिवर्धन कुमार के साथ इन दोनों का सम्बन्ध कब से
दुपा है ?
विवेकाचार्य-ये दोनों कुमार के अन्तरंग राज्य में मित्र और स्त्री के रूप में रहते आए हैं । वैश्वानर स्वयं को उसका मित्र बताता है और हिसा उसकी स्त्री बन कर रहती है । नन्दिवर्धन ने भी अपना हृदय इन दोनों को समर्पित कर दिया है जिससे वह स्वकीय अर्थ (कार्य) सिद्ध होगा या नहीं इसका भी विचार नहीं करता, किस कार्य में धर्म है या अधर्म, अमुक पदार्थ भक्ष्य है या अभक्ष्य, पेय है या अपेय इसका भी विचार नहीं करता। अमुक बात बोलने योग्य है या नहीं, अमुक स्त्री गमन योग्य है या नहीं और अमुक कार्य के परिणाम स्वरूप अपना कितना हित या अहित होगा इसका भी विवेक नहीं रखता, पर्यालोचन नहीं करता । इसी मनोवृत्ति के फलस्वरूप स्वाभ्यस्त कितने ही गुरगों के प्रयोग करने की प्रवृत्ति को भी वह भूल गया है। इसकी आत्मा क्षरणमात्र में परिवर्तित होकर समग्र दोषों का भण्डार बन गई है । राजन् ! इन दोषों को धारण कर नन्दिवर्धन बचपन से ही सह शिक्षार्थी निरपराध बालकों को अनेक प्रकार के त्रास देता था, अपने कलाचार्य (शिक्षक) को बार-बार धमकी देता था और हितोपदेश देने वाले विदुर को भी इसने एक बार चांटा मार दिया था। बुरी संगति से बचपन में ही ऐसे-ऐसे उत्पात करने के पश्चात् युवावस्था में दोनों को संगति से इसने अनेक प्राणियों का नाश किया, बड़े-बड़े युद्ध कर इसने संसार को संतप्त किया। इन दोनों के वशोभूत होकर इसने परमोपकारी बान्धवों को भी मारने का प्रयत्न किया । अपने स्नेही महाराज कनकचूड और कुमार कनकशेखर का तिरस्कार किया। स्फुटवचन के साथ असमय ही मिथ्या विवाद किया, बिना कारण उसे मार डाला। माता-पिता, भाई-बहन और अपनी प्रिया का भी खून किया। पूरे शहर को जला कर भस्म कर दिया और स्नेह से परिपूर्ण मित्रों और नौकरों को मार दिया। यह सब तो आपने अभी-अभी सुना ही है । हे राजन् ! इन सारे दोषों का यह जो ताण्डव हो रहा है उसका कारण ये दोनों वैश्वानर और हिंसा ही हैं। इसमें वैश्वानर मित्र रूप में और हिंसा पत्नी रूप में विद्यमान है । इस बेचारे
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