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प्रस्ताव ३ : मलयविलय उद्यान में विवेक केवली
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नन्दिवर्धन की दुष्कर्म-कथा ।
उसके पश्चात् प्राचार्यश्री ने स्फूटवचन के साथ जयस्थल में पद्म राजा की सभा में तनिक-सी बात पर हुए विवाद से लेकर, चोर इसे शार्दूलपुर नगर के समीप इस जंगल में छोड़ गये वहाँ तक की (नन्दिवर्धन की) सब घटना कह सुनाई । मेरा ऐसा चित्र-विचित्र चरित्र सुनकर राजा और सम्पूर्ण धर्मसभा को अत्यन्त आश्चर्य हुआ । राजा ने विचार किया कि इसका मुंह और हाथ बन्धे हुए हैं उन्हें छुड़ा दू या नहीं? नहीं, नहीं ! अभी तो आचार्यश्री ने उसके दुश्चरित्र का जो वर्णन किया है, उसे ध्यान में रखते हुए यदि मैं इसे बन्धन-मुक्त करूगा तो यह अभी कुछ नया उत्पात मचा देगा और हम लोग केवली भगवान् के मुख से धर्मकथा सुनने का लाभ प्राप्त कर रहे हैं उसमें भी विध्न उत्पन्न हो जायेगा । अतः जब तक प्राचार्यश्री का उपदेश चल रहा है तब तक तो इसे इसी दशा में रहने देना चाहिये । धर्मसभा समाप्त होने पर इसके विषय में सोचकर उचित कार्यवाही करूंगा । जिस प्राणी का ऐसा घोर पाप पूर्ण चरित्र हो उस पर एकदम अधिक दया दिखाना भी संगत नहीं है । अब केवली भगवान् से एक दूसरा प्रश्न भी पूछ लू ।
अरिदमन-महाराज! हमने तो कुमार नन्दिवर्धन के विषय में पहले बहुत बड़ी-बड़ी बातें सुनी थीं कि वह महागुणवान है । हमने तो सुना था कि वह महान् योद्धा, दक्ष, स्थिर, बुद्धिमान, महासत्ववान, दृढप्रतिज्ञ, रूपवान, राजनीति का ज्ञाता, सर्व शास्त्रों में प्रवीण, समस्त गुणों की कसौटी और अत्यन्त प्रसिद्धि प्राप्त असाधारण पुरुष है। जिसके बारे में हमने इतनी अच्छी बातें सुनी थी उसने ऐसा निकृष्ट पाप कार्य क्यों कर किया होगा? यह कुछ भी समझ में नहीं आता। [१-२]
विवेकाचार्य-राजन् ! इसमें इस बेचारे तपस्वी का कुछ भी दोष नहीं है। तुमने इसके जिन-जिन गुणों का वर्णन किया * वह अपने स्वरूप से इन सब गुणों से युक्त है । । ३]
अरिदमन-भगवन् ! यदि यह नन्दिवर्धन प्रात्म-स्वरूप से निर्दोष होने के कारण इस निकृष्ट चरित्र के लिये दोषी नहीं है तो फिर किस का दोष है ? आप कृपाकर बतलावें । [४]
विवेकाचार्य-उससे कुछ दूरी पर जो पूर्णरूपेण कृष्ण रूप वाली दो मनुष्य प्राकृतियाँ बैठी हैं, यह सब दोष उन्हीं का है।।
राजा ने आँखें फैलाकर मुझे देखा और फिर मेरे से कुछ दूर बैठी उन दो काली आकृतियों को बार-बार देखा।
अरिदमन-महाराज ! दूर से देखने से इन दो काली प्राकृतियों में से एक पुरुष और एक स्त्री जान पड़ती है।
विवेकाचार्य-तुमने ठीक ही देखा है।
अरिदमन-महाराज ! यह पुरुष कौन है ? * पृष्ठ २८४
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