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________________ २८ : वैश्वानर और हिंसा के प्रभाव में युवराज पद की तैयारी उपरोक्त बातचीत हुए कुछ दिन बीते होंगे कि एक दिन राजा के मन में विचार उठा कि कुमार नन्दिवर्धन को युवराज पद प्रदान करना चाहिये। राजा ने अपने मंत्रियों से यह बात कही जिसे उन्होंने भी स्वीकार कर लिया। इस कार्य के लिये एक शुभ दिन निश्चित किया गया और युवराज पद देने के लिये आवश्यक सामग्री तैयार की गई। मुझे राज्य सभा में बुलाया गया। मेरे लिये एक सुन्दर भद्रासन तैयार करवाया गया। सभी सामन्त और नागरिक एकत्रित हुए, सब प्रकार के मंगलोपचार किये गये, प्रत्येक प्रकार की उत्तमोत्तम वस्तुयें बाहर रखी गई । अन्तःपुर की सभी स्त्रियां भी वहाँ उपस्थित हुई। मदनमंजूषा के सगाई का प्रस्ताव . उसी समय प्रतिहारिणी अन्दर आई और मेरे पिताजी को हाथ जोड, चरण-स्पर्श कर, अंजलि संपुट कपाल पर लगाकर कहने लगी-'देव ! अरिदमन राजा का बड़ा प्रधान स्फुटवचन आपसे मिलना चाहता है। अभी वे बाहर के द्वार पर खड़े हैं, आपकी क्या आज्ञा है ?' राजा ने उन्हें राज्य सभा में भेजने की आज्ञा दी, अतः स्फुटवचन को लेकर प्रतिहारिणी अन्दर आई । मेरे पिताजी को नमस्कार कर मुख्य प्रधान ने कहा-'महाराज! मैंने अभी-अभी सुना है कि आज राजकुमार नन्दिवर्धन को युवराज पद देने का महोत्सव मनाया जा रहा है । यह प्रशस्त एवं शुभ मुहूर्त है ऐसा सोचकर जिस काम से मैं आया हूँ उसे शीघ्र पूरा करने की आशा से मैंने राज्यसभा में प्रवेश किया है।' पद्म राजा-यह तो बहुत अच्छी बात है। आपका यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ? बताइये। - स्फुटवचन-पापको ज्ञात ही है कि शार्दूलपुर में सुगहीतनामधेय अरिदमन राजा राज्य करते हैं। उनके कामदेव की पत्नी रति के रूप को भी पराजित करने वाली रतिचूला महारानी है। महारानी से राजा के मदनमंजुषा नामक पुत्री है जो अचिन्त्य गुण रत्नों की मंजूषा ही है। जनमुख से कुमार नन्दिवर्धन के पराक्रम की यशोगाथा सुन-सुन कर मदनमंजूषा कुमार के प्रति अत्यन्त ही अनुरागवती हो गई है और उन्हीं के साथ लग्न करने का कुमारी ने निश्चय किया है। कुमारी ने अपने निर्णय को अपनी माता रतिचूला महारानी को बताया और महारानी ने उसे महाराज को सूचित किया। उसके पश्चात् महाराजा ने मुझे * पृष्ठ २७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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