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प्ररताव ३ : कनकमंजरी
मुख्य ज्योतिषी के निदशानुसार हमारा हस्त-मिलाप किया गया, फेरे फिरवाये गये और विधि अनुसार सभी प्रकार के लौकिक रीति-रिवाजों को पूर्ण किया गया। बड़े आडम्बर के साथ हमारे विवाह-यज्ञ का कार्य पूर्ण हआ। फिर देव भवन की शोभा को भी फीका करने वाले विशेष सुसज्जित शयन गृह में जहाँ कनकमंजरी थी मैंने प्रेम रूपी अमृतसमुद्र में डुबकी लगाते हुए प्रवेश किया। हमारा परस्पर का प्रेम दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया और कई दिन हमने इस राजभवन में आनन्द पूर्वक बिताये।
२५. हिंसा के प्रभाव में हमारे साथ लड़ने वाले विभाकर को युद्ध में जो घाव लगे थे वे अब भर गये थे । उसका शरीर भी स्वस्थ हो गया था। उसे मुझ से स्नेह हो गया था और वह मेरा विश्वासपात्र भी बन गया था। कुछ दिनों के बाद महाराज कनकचूड ने उसे मानपूर्वक परिवार सहित उसके राज्य में वापिस भेज दिया। अम्बरीष जाति के लुटेरों का नायक प्रवरसेन युद्ध में मारा गया था, अत: अन्य वीरसेन आदि मेरे दास बनकर मेरे पास ही रहने लगे। उन्हें भी योग्य सन्मान देकर मैंने उनको उनके देश की ओर विदा किया। अब मेरे मन में किसी प्रकार की चिन्ता न थी, किसी अोर से मुझे संताप हो ऐसा भय भी नहीं था। ऐसे सर्वथा अनुकूल संयोगों में मैं अपनी प्रियपत्नियों रत्नवती और कनकमंजरी के साथ प्रानन्दसमुद्र में कल्लोल करता हुमा कनकचूड राजा के कुशावर्तपुर में कुछ समय तक रहा । नन्दिवर्धन की विपरीत बुद्धि
मुझे सर्व प्रकार के प्रानन्द-सुख प्राप्ति का वास्तविक कारण तो मेरा मित्र पुण्योदय ही था, किन्तु महामोह के वशीभूत मेरा मन घने अन्धकार में भटक रहा था जिससे मुझे सर्वदा ऐसा ही लगता था कि यह सब मेरी प्रिया हिंसा और मेरे मित्र वैश्वानर का ही प्रभाव है । इन दोनों के प्रभाव से ही कनकमंजरी जैसी सुन्दर पत्नी जो आनन्द रूपी अमृतरस की कुइयाँ जैसी है, मुझे प्राप्त हुई है। महाराजा कनक चूड ने स्वयं ही मरिणमंजरी से कहा था कि 'द्रुम और समरसेन जैसे योद्धाओं को नन्दिवर्धन कमार ने (मैंने) खेल-खेल ही में मृत्यु के घाट पहँचा दिया, इसीलिये हमें कुमारी कनकमंजरी का लग्न उसके साथ करना चाहिये।' यह बात मणिमंजरी ने कपिजला को कही थी और कपिजला से सुनकर तेतलि सारथि ने मुझे कही थी। द्रुम और समरसेन को मैंने हिंसादेवी और वैश्वानर के प्रभाव से ही पराजित किया था, इसमें क्या सन्देह है ? वस्तुतः मुझे कनकमंजरी की प्राप्ति हिंसा और वैश्वानर के सहयोग से ही प्राप्त हुई है। इनका मुझ पर असीम उपकार है । ऐसे-ऐसे विचारों से मेरे मन में हिंसा और वैश्वानर के प्रति अधिकाधिक स्नेह बढता गया।
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