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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा अचानक तीव्र कोलाहल उठा और दासियां उच्च स्वर में पुकार करने लगीं। अचानक यह क्या हुआ ? राज्य सभा विचार में पड़ गई । तुरन्त सभा विसर्जित कर दी गई। कोई विमलानना और रत्नवती का हरण कर ले गया ऐसी पुकार पाने लगी। उसी समय हमने अपनी सेना तैयार कराई और अपहर्तामों का पीछा किया । अपहर्ता का ज्ञान जो शत्रसेना विमलानना और रत्नवती का अपहरण कर भाग रही थी वह अधिक दिनों की यात्रा परिश्रम से थक चुकी थी और हमारी सेना तेज और उत्साह वाली थी, अतः कुछ ही दूर पीछा करने के बाद हमारी सेना ने अपहरणकत्रिों की सेना को पकड़ लिया। हमने दूर ही से भाटों द्वारा उच्च स्वर में गाया जाने वाला राजा विभाकर का यशोगान सुना । इससे हमें यह निश्चय हो गया कि अरे ! यह तो कनकपुर निवासी प्रभाकर और बन्धुसुन्दरी का पुत्र विभाकर ही होना चाहिये जिसके साथ प्रभावती ने विमलानना की जन्म से पहले ही सगाई कर दी थी। पद्मराजा के पास कनकचूड के मन्त्रियों ने इस विषय में जो बात सुनाई थी वह हमने पहले विस्तार से सुनी ही थी। यह पापी हमारी अवज्ञा कर हमारी कुलवधुनों का हरण कर भाग रहा है, चलो, इस दुष्टात्मा को तो उग्र दण्ड देना ही चाहिये । मैं अपने मन में यह विचार कर ही रहा था कि मेरे मित्र वैश्वानर ने संकेत किया और मैंने तुरन्त क्रूरचित नामक बड़ा खा लिया। परिणामस्वरूप मेरी मनोवृत्ति तेजस्वी हो गई और मैंने हुंकार के साथ आवाज लगाई, अरे ! अधम, नीच, चोर विभाकर ! पराई स्त्रियों के चोर ! कहाँ भाग रहा है ? जरा मनुष्य बन ! पौरुष धारण कर और सामने प्रा ! ऐसे तिरस्कारपूर्ण वचन सुनकर शत्रु की सेना ने गंगा के प्रवाह की भांति तीनों तरफ से हमारी सेना को घेरकर व्यूह रचना की। सेना के तीनों भागों के सेनापति भी अलग-अलग हो गये । अतः में, महाराज कनकचूड और बन्धु कनकशेखर हम तीनों शत्रु सेना के तीनों सेनापतियों के समक्ष लड़ने को तैयार हो गये। सेनापतियों की पहिचान कनकचूड राजा के पास पहिले दोनों कन्याओं के आगमन के समाचार लेकर आने वाला नन्दराजा का दूत विकट इस समय मेरे पास ही खड़ा था, अतः मैंने उससे पूछा-'अरे विकट ! अपने विपक्ष में जो ये तीन सेनापति हम से लड़ने आये हैं, वे कौन-कौन हैं ? क्या तू उन्हें पहचानता है ?' प्रत्युत्तर में विकट बोला-'जी हाँ, मैं इन तीनों को अच्छी तरह से पहचानता हूँ। आपके समक्ष दुश्मन की सेना के बांयें हिस्से का जो सेनापति है, वह कलिंग देश का अधिपति राजा समरसेन है। विभाकर ने यह महायुद्ध इसके बल पर ही प्रारम्भ किया है। इसके पास बहुत बड़ी सेना है, इसलिये यह विभाकर के पिता प्रभाकर के साथ स्वामी जैसा व्यवहार करता है । शत्रुसेना के मध्य भाग का सेनापति जो महाराज कनककूड के सामने है, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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