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प्रस्ताव ३ : दोक्षा महोत्सव : दीक्षा श्रौर देशना
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गुरु महाराज - शुभसुन्दरी के बहुत से पुत्र हैं । इस त्रिभुवन में जो प्राणी मनीषी जैसे दिखाई देते हैं वे सब शुभसुन्दरी के पुत्र हैं इसमें किञ्चित् भी संदेह नहीं । इस संसार के सभी उत्तम प्रारणी जो महासत्त्व वाले प्राणियों के मार्ग पर चलने वाले हैं, वे सब मनीषी के समान शुभसुन्दरी के ही पुत्र हैं, ऐसा समझें । [४६-५०]
राजर्षि शत्रुमर्दन - भदन्त ! आपने पहले बाल की माता अकुशलमाला बताई, तब उसके भी बाल के अतिरिक्त और पुत्र होंगे ? [ ५९ ]
गुरु महाराज - हाँ, उसके भी बहुत से पुत्र हैं । इस संसार के अधम, तुच्छ स्वभाव के जितने भी मनुष्य हैं, वे सब प्रकुशलमाला के पुत्र हैं, इसमें भी कोई संशय नहीं है । बाल जैसे अधम आचरण वाले पुरुषों को तुरन्त पहचान लेना चाहिये कि ये अकुशलमाला के पुत्र हैं । [ ५२-५३]
राजर्षि शत्रुमर्दन - भगवन् ! यदि ऐसा है तो सामान्यरूपा के भी मध्यमबुद्धि जैसे अन्य पुत्र होंगे ? मध्यमबुद्धि के अन्य सहोदर हैं या नहीं ? [ ५४ ]
में
गुरु महाराज - अरे, इस सामान्यरूपा के तो अत्यधिक पुत्र हैं । इस संसार कुछ मनीषी जैसे प्रत्युत्तम चरित्र वाले और कुछ बाल जैसे अत्यन्त धम चरित्र वाले मनुष्य होते हैं । इनके अतिरिक्त बाकी के सब मनुष्यों को मध्यमबुद्धि के भाई ही समझना चाहिये । मध्यमबुद्धि की भांति कुछ-कुछ मलिन आचरण वाले जितने भी मनुष्य इस त्रिभुवन में हैं, उन सब को सामान्यरूपा के पुत्र समझना चाहिये । मनीषी और बाल जैसे प्राणियों की अपेक्षा से यदि मध्यमबुद्धि जैसे प्राणियों की गिनती की जाय तो वे उन दोनों से अनन्त गुणे अधिक होंगे, इसीलिये मैंने कहा कि सामान्यरूपा के तो अत्यधिक पुत्र हैं । [५५-५७]
राजर्षि शत्रुमर्दन -- भगवन् ! यदि ऐसा ही है तो मेरे मन में एक विचार आ रहा है । आपके कथनानुसार कर्मविलास राजा ने अपनी तीन स्त्रियों से जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तीन प्रकार के प्राणी उत्पन्न किये, अतः सम्पूर्ण संसार के सभी प्राणी कर्मविलास राजा के कुटुम्बी हुए, क्या यह बात ठीक है ? [ ५८ ]
गुरु महाराज - श्रार्य ! इसमें कोई सन्देह नहीं है, तुम्हारा कथन सत्य है । तुम इस कथन के भाव को सम्यक् प्रकार से समझ गये हो। जिनकी बुद्धि मार्गानुसारिणी होती है, अर्थात् वे शीघ्र ही सत्य को पकड़ लेते हैं । वैसे तो सभी योनियों में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट प्रारणी होते हैं, पर इन वर्गों की स्पष्ट पहचान मनुष्य योनि में ही हो पाती है । मनुष्यों में तो यह पूरा कुटुम्ब सर्वत्र स्पष्टतः दिखाई देता
है । [५६-६०]*
बुद्धिमान पुरुष को क्या करना चाहिये ? इस सम्बन्ध में संक्षेप में कहता हूँ, उसे सुनो- बाल का चरित्र त्याज्य है अतः किसी को भी न तो उसके जैसा आचरण ही करना चाहिये और न ऐसे व्यक्ति की संगति ही करनी चाहिये । जिस * पृष्ठ २३३
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