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________________ ३१४ उपमिति-भव-प्रपंच कथा व्यक्ति को सुख की इच्छा हो उसे मनीषी के चरित्र का यत्न पूर्वक आदर करना चाहिये और उसके जैसा बनने का प्रयत्न करना चाहिये । अधिकांशतः प्राणी मध्यमबुद्धि जैसे होते हैं, पर यदि वे सम्यक् अनुष्ठान करें तो प्रयत्न से मनोषी जैसे हो सकते हैं । अतः हे भव्य प्राणियों ! तुम्हें बारम्बार यही कहना है कि मेरे वचनों का अनुसरण करते हुए तुम्हें मनीषी के चरित्र का अनुकरण करना चाहिये और प्रयत्न पूर्वक पापी मित्रों का साथ छोड़ देना चाहिये, क्योंकि स्पर्शन की संगति से ही अन्त में बाल का विनाश हुआ और उस स्पर्शन का त्याग करने से ही मनीषी ने संसार में उत्कृष्टतम रूप से सुस्पष्ट प्रसिद्धि प्राप्त की और अन्त में मोक्ष को सिद्ध करने वाला साधक बना । अतः अपना हित चाहने वाले प्राणियों को कल्याणकारी पवित्र मित्रों की संगति करनी चाहिये । अन्त:करण से समझना चाहिये कि पवित्र मनुष्यों की मित्रता इस भव और परभव में सब प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त कराने वाली है। बुरे मनुष्य की संगति इस भव में दुःखदायी और अच्छे मनुष्य की संगति सुखदायी होती है । मध्यमबुद्धि के सम्बन्ध में यह वास्तविकता तुमने स्वयं देखी है । देखो, जब तक उसने बाल की संगति की तब तक वह भी अनेक प्रकार के दुःखों का भाजन बना । उसने जब से मनीषो को संगति की तब से उसे आनन्द ही आनन्द प्राप्त हुना। अतएव इस सच्चाई को ध्यान में रखकर तुम्हें निश्चय करना चाहिये कि बाह्य अथवा अन्तरंग में दुर्जन की संगति कभी नहीं करनी चाहिये और सर्वदा सज्जनों की ही संगति करनी चाहिये । [६१-७०] जिनेश्वर देव के शासन के ऐसे अप्रतिम और अत्यन्त मनोहारी शब्द सुनकर बहुत से प्राणियों ने बोध प्राप्त किया और धर्माचरण में तत्पर हुए। देवगण अपनेअपने स्थान को गये । सुलोचन कुमार राज्य शासन चलाने लगा और प्राचार्य श्री ने अपने पुराने और नये शिष्यों के साथ वहाँ से अन्यत्र विहार किया । ७१-७२] जिनागम प्रदर्शित मार्ग पर बहुत समय तक चलते हुए जब अन्तिम समय निकट देखा तब समस्त विधियों को पूर्णकर मनीषी ने ज्ञान, ध्यान, तप और वीर्य के उपयोग से सब पापों को नष्ट कर, शरीर का त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया। मध्यम वीर्य वाले मध्यमबूद्धि और उसके जैसे अन्य साधुओं ने अपने कर्मों को बहुत कम और बहुत हल्के कर अन्त में देवलोक प्राप्त किया। वे अन्य भवों में मोक्ष प्राप्त करेंगे । बाल के सम्बन्ध में प्राचार्य श्री ने पहले से ही भविष्यवाणी की थी कि वह चण्डाल के हाथ से मर कर नरक में जायगा, वैसा ही हा। मुनि महाराज के भविष्य वचन कभी झूठे नहीं होते। [७३-७४] स्पर्शन कथानक सम्पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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