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________________ ३०० उपमिति-भव-प्रपंच कथा मन्त्री–महाराज ! इसमें नवीनता क्या है ? इसका नाम ही मनीषो है * जो सर्व प्रकार से योग्य है। मनीषी अर्थात् बुद्धि-चातुर्य वाला महापुरुष, यह तो आप जानते ही हैं। ऐसे महापुरुष तो जन्म से ही जाग्रत और गहन विचारशक्ति वाले होते हैं। उन्हें जाग्रत करने में गुरु तो निमित्त मात्र होते हैं, वास्तव में तो वे स्वयं बोध प्राप्त करते हैं। १६ : निजविलसित उद्यान का प्रभाव मध्यमबुद्धि का आगमन मनीषी को महोत्सव पूर्वक जब राजमन्दिर में प्रवेश कराया गया तभी राजा की आज्ञा से सुबुद्धि मन्त्री ने मध्यमबुद्धि को भी अपना स्वधर्मी भाई जानकर प्रात्मीय सदन (अपने गृह) में प्रवेश कराया। मध्यमबुद्धि वहाँ अाया, वह बहुत हर्षित हुआ और विशिष्ट दान दिया । मन्त्री के भवन में आकर मध्यमबुद्धि ने स्नान किया, भोजन किया, पान सुपारी खायी, शरीर पर विलेपन किया, आभूषण पहने, शृंगार किया और माला पहनी । सुबुद्धि और उसके परिवारजनों के मधुर प्रेम भरे प्रशंसा के वचन सुनकर उसका सरल हृदय बहुत हर्षित हुअा। फिर वह भो राजसभा में आ गया। आते ही मनोषी ने उसे हर्षोल्लास पूर्वक नमस्कार किया और अपने सिंहासन के पास ही एक अन्य विशिष्ट विशाल प्रासन पर बिठाया। मध्यमबुद्धि का उपकार शत्रमर्दन राजा ने मध्यमबुद्धि को देखकर सूबुद्धि मन्त्री से कहा-मित्र ! इस महापुरुष मध्यमबुद्धि ने भी हम पर बहुत उपकार किया है । सुबुद्धि--देव ! वह कैसे ? ___ शत्रुमर्दन-सुनो। प्राचार्यश्री ने आज जब अप्रमाद यन्त्र के सम्बन्ध में उपदेश दिया तब मुझे भयंकर लड़ाई के मैदान में कायर मनुष्य के समान अकुलाहट हई, क्योंकि मुझे उस समय ऐसा लगा कि इस अप्रमाद यन्त्र को ग्रहण कर उसके अनुसार प्रवृत्ति करना मेरे जैसे व्यक्ति के लिये बहुत कठिन है। उस समय इस मध्यमबुद्धि ने आचार्यश्री से गृहस्थधर्म स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की और मैं भी उसका पालन कर सकता हूँ ऐसा मुझे सुझाया तथा मेरी आकुलता दूर की, इससे मैं आश्वस्त हो गया । गृहस्थधर्म स्वीकार करने पर मेरे मन को भी बहुत धैर्य प्राप्त हुआ, मुझे सहारा मिला और मेरा चित्त प्रसन्न हुआ। इस सब का ॐ पृष्ठ २२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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