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प्रस्ताव ३ : अप्रमाद यंत्र : मनीषी
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को सुनकर तो मन में कंपकंपी छटती है। यह महापुरुष कौन है ? कहाँ से आया है ? इसे तो मानों किसी महान राज्य को जीतने की इच्छा हुई हो वैसे ही हर्षातिरेक पूर्वक अप्रमाद यन्त्र को धारण करने की इच्छा हो रही है।
प्राचार्य- भूप! इसका नाम मनीषी है और यह इसी क्षितिप्रतिष्ठित नगर का रहने वाला है।
राजा शत्रुमर्दन मन में विचार करने लगा कि, अरे ! जब मैंने उस पापी बाल को मारने की आज्ञा दी थी तभी मैंने मनीषी नामक उसके भाई की प्रशंसा करते लोगों को सुना था। वे कह रहे थे कि, देखो एक ही पिता के दो पुत्र होने पर भी इस बाल और मनीषी में कितना अन्तर है ? एक का इतना बुरा आचरण कि बह सब से तिरस्कार पाता है और दूसरा महात्मा है और सब से प्रशंसा को प्राप्त करता है । यह वही मनीषी होना चाहिये । अथवा इसके सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राचार्य से ही क्यों न पूछ लू? इस प्रकार अपने मन में विचार कर राजा शत्रुमर्दन ने पूछा-- महाराज! इस नगर में इसके माता-पिता कौन हैं और इसके अन्य सम्बन्धी कौन हैं ?
प्राचार्य-इस क्षितिप्रतिष्ठित नगर का स्वामी कर्मविलास नामक महाराजा है, वह मनीषी का पिता है और उसकी शुभसुन्दरी नामक पटरानी इसकी माता है। उसी राजा की अन्य रानी अकुशलमाला का पुत्र बाल है। मनीषी के पास जो दूसरा पुरुष खड़ा है वह इस राजा की एक अन्य रानी सामान्यरूपा का पुत्र मध्यमबूद्धि है। इतने तो इसके सम्बन्धी यहाँ विद्यमान हैं, बाकी इसके अन्य सम्बन्धी देशान्तरों में हैं जिनके बारे में बताने का अभी कोई प्रयोजन नहीं है। अन्तरंग राज्य की तन्त्र-प्रक्रिया
शत्रमर्दन- महाराज ! तब क्या इस क्षितिप्रतिष्ठित नगर का स्वामी मैं न होकर वह कर्मविलास राजा है ?
प्राचार्य -- हाँ, तुम नहीं हो। शत्रुमर्दन-यह कैसे ?
प्राचार्य - सुनो। इसका कारण यह है कि कर्मविलास महाराज जो-जो आज्ञा देते हैं, उनमें से एक भी आज्ञा का उल्लंघन प्रक.पत नगर के निवासी भय से नहीं कर सकते । अर्थात् उनकी आज्ञा में किचित् मात्र रद्दोबदल करने का भी किसी में साहस या सामर्थ्य नहीं है। तेरा राज्य भो तुझ से लेकर किसी अन्य को देना हो अथवा तेरे ही अधीन रखना हो आदि सब बातों का सामर्थ्य इस कर्मविलास महाराजा में है। इन सब में तेरा आदेश या निर्देश नहीं चल सकता, पर इस राजा का चलता है, अतः परमार्थ से वही इस नगर का राजा है। जिसकी प्रभता सम्पन्न माज्ञा चलती हो वही प्रभु, नृपति कहलाता है। [१-३]
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