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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
शत्रुमर्दन -- भगवन् ! आपके कथनानुसार यदि कर्मविलास इस नगर का राजा है, तब वह दिखाई क्यों नहीं देता? कृपा कर कारण बतावें।
आचार्य-राजन् ! * इसका कारण सुनो। कर्म विलास अंतरंग राज्य का राजा है इसलिये वह तुम जैसे व्यक्ति को दिखाई नहीं दे सकता। अन्तरंग लोक के व्यक्तियों का स्वभाव है कि वे गुप्त रहकर सब कार्य करते हैं। धैर्यवान व्यक्ति केवल बुद्धि | दृष्टि से अन्तरग लोक को देख पाते हैं तथा अन्तरंग राज्य के निवासी जो प्राणी आविर्भूत होते हैं उनको स्पष्टतया देख सकते हैं। इस विषय में तुम्हें विषाद करने की आवश्यकता नहीं है। यह राजा केवल तुम्हें ही पराजित कर रखता हो ऐसी बात नहीं है। इसने तो अपने पराक्रम से संसार में रहने वाले प्रायः सभी प्राणियों को पराजित कर अपने अधीन वशवर्ती कर रखा है। [४-६]
वार्ता के रहस्य को समझ कर सुबुद्धि मंत्री ने राजा से कहा-महाराज ! आचार्य श्री ने प्रभो जिस राजा का वर्णन किया उसे मैं भी पहचान गया हूँ। मैं आपको उसके विषय में विस्तार से बताऊँगा। प्राचार्यश्री ने मुझे पहले भी इस राजा के स्वरूप को समझाया है, आप चिन्ता न करें . [१०-११] गृहस्थ-धर्म का स्वरूप
इसो समय अवसर देखकर मध्यमबूद्धि ने मस्तक झकाकर प्राचार्यश्री से प्रश्न किया-भगवन् ! आपने कुछ समय पहले कहा है कि गृहस्थधर्म भी संसार को क्षीण करने वाला है, यदि मैं उसके योग्य हू तो आप मुझे उसे प्रदान करने का कृपा करें [१२-१३]
प्राचार्य-भागवती भावदीक्षा के सम्बन्ध में सुनकर जब तुम्हारे जैसे व्यक्ति उस पर आचरण करने में असमर्थ हों, तब गहस्थ-धर्म का आचरण करना उचित ही है। [१४]
शत्रमर्दन-भगवन् ! गृहस्थ-धर्म का क्या स्वरूप है ? बताने की कृपा करें। उसे जानने की मेरी उत्कट अभिलाषा है ।
प्राचार्य- यदि ऐसी इच्छा है तो गृहस्थ धर्म का स्वरूप सुनो। [१५]
तब आचार्यश्री ने मोक्षरूपी कल्पवृक्ष को उगाने वाले सम्यक् दशनरूपो अमोघ बीज कैसा होता है उसका वर्णन किया । ससार वृक्ष की जड़ को अल्प समय में ही नष्ट करने में निपुण और स्वर्ग तथा मोक्षमार्ग के साथ शीघ्र सम्बन्ध स्थापित कराने वाले, अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रतों का वर्णन किया। जिसके कारण उस समय आवरणीय कर्मों का प्रांशिक नाश और अांशिक शमन होने पर शत्रुमर्दन राजा को भी सम्यग् दर्शन पूर्वक देशविरति (गृहस्थ-धर्म) ग्रहण करने की इच्छा हई । उनके मन में आया कि गृहस्थ-धर्म तो मेरे जैसे लोगों द्वारा भी ग्रहण किया जा
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