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उपमिति-भव-प्रपंच कथा.
शय्या या अन्य जो कुछ भी स्पर्शन को सुखकारी हैं उन कार्यों को करने या भोगने मात्र में लग गया। इस स्पर्शनजन्य उपभोग का क्या दुष्परिणाम होगा? इसका विचार किये बिना ही लोलुपता के साथ इन कार्यों में प्रवृत्त हो गया। उसकी ऐसी प्रगाढ प्रासक्तिपूर्ण प्रवृत्ति देखकर मनीषी को उस पर दया आने लगी और कभीकभी वह उसे अपने द्वारा स्पर्शन की मूल-प्रवृत्ति के विषय में की गई जाँच के बारे में बताता और कहता-भाई बाल ! यह स्पर्शन बड़ा ठग है, थोड़ा भी विश्वास करने योग्य नहीं है, यह सचमुच ही प्रबल शत्रु है। जब बाल के समक्ष वह यह सब कुछ कहता और उसे स्पर्शन के विरुद्ध भड़काता तब बाल कहता -'भाई मनोषी ! जिस बात का तुमने अनुभव नहीं किया उस विषय में व्यर्थ ही बात करने से क्या लाभ ? जो मेरा परम मित्र है, मुझे अनन्त सुख-सागर में अवगाहन करवाता है, उसे तू मेरा शत्रु कहता है ! यह कैसी उल्टी बात है ?' ऐसा विचित्र उत्तर सुनकर मनीषी अपने मन में विचार करने लगता, वास्तव में बाल मूर्ख लगता है। उसे रोकना अभी तो संभव नहीं है, अतः अभी तो स्वयं को उ ससे बचाना ही पर्याप्त है। नीति-शास्त्र में भी कहा है :
मूर्ख मनुष्य जब अकार्य करने में तत्पर हो, तब उसे रोकने के लिये वाणी द्वारा समझाने आदि का जो प्रयत्न किया जाता है वह राख में घी डालने जैसा है। ऐसे मूर्ख को शताधिक बार उपदेश देने पर भी वह कुकृत्य करने से नहीं रुकता । राहू को कितना भी वाक्यों द्वारा समझाओ किन्तु वह तो चन्द्र को ग्रसेगा ही । दुर्बुद्धि प्राणी जब अकार्य करने में संलग्न हो जाता है तब समझदार व्यक्ति को उपदेश द्वारा उसे नहीं रोकना चाहिये।
- ऐसा सोचकर मनीषी ने बाल को जो सशिक्षा देने का सत्प्रयास किया था, उसका त्याग किया और मौन धारण कर लिया।
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६. मध्यमन्दि कर्मविलास राजा के उपर्युक्त शुभसुन्दरी और अकुशलमाला के अतिरिक्त एक और रानी थी जिसका नाम सामान्यरूपा था। इस रानी के एक अत्यन्त वल्लभ मध्यमबुद्धि नामक पुत्र था। मध्यमबुद्धि पर बाल और मनीषी का बहुत प्रेम था । दोनों ने उसके साथ बहुत समय तक क्रीडा की थी। राज्य सम्बन्धी कुछ कार्य के लिये महाराजा की आज्ञा से वह विदेश गया हुआ था। वह अभी-अभी वापिस क्षितिप्रतिष्ठित नगर में लौटा था । आते ही उसने बाल और मनीषी को स्पर्शन के साथ देखा । * वह दोनों भाइयों तथा स्पर्शन से आलिंगनपूर्वक मिला। फिर मध्यमबुद्धि को कुछ कौतुक होने से अपना मुंह बाल के कान के पास ले जाकर गुप्तरूप से पूछा-'अरे भाई । यह नया व्यक्ति कौन है ?' बाल ने उत्तर दिया- 'बन्धु ! यह * पृष्ठ १६६
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