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________________ प्रस्ताव ३ : मध्यमबुद्धि २३१ तो अत्यन्त प्रभावशाली अपना मित्र स्पर्शन है।' मध्यमबुद्धि ने जब उसका विशेष स्वरूप पूछा तब बाल ने स्पर्शन के सम्बन्ध में सब वृत्तान्त कह सुनाया, जिसको सुनकर मध्यमबुद्धि को भी स्पर्शन पर अनुराग हुआ। फिर बाल के कहने से स्पर्शन ने मध्यमवृद्धि पर भी अपनी शक्ति का प्रयोग किया। स्पर्शन योगशक्ति से अन्तान होकर मध्यमबूद्धि के शरीर में प्रवेश कर गया जिससे उसे बहुत आश्चर्य हुआ और उसमें कोमल स्पर्श प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हुई । उसने सुन्दर कोमल शय्या; ललित ललनात्रों के संग सुरत-क्रिया आदि द्वारा स्पर्श सुख का अानन्द करवाया और उसके मन में भी अपने प्रति प्रेम उत्पन्न किया। स्पर्शन पुन: प्रकट हुआ और मध्यमबुद्वि से पूछा कि, उसका प्रयोग सफल हुआ या नहीं ? उत्तर में मध्यमबुद्धि ने सहसा उसके प्रति आभार प्रदर्शित किया। स्पर्शन ने भी मन में सोचा, कोई बात नहीं, यह भाई भी मेरे चंगुल में फंस गया है । मध्यमबुद्धि को संशय : मनीषी की चेतावनी यह देखकर मनीषी अपने मन में विचार करने लगा कि पापी स्पर्शन ने इस मध्यमबुद्धि को भी लगभग अपने वश में कर लिया है। यदि यह मेरी बात माने तो इसे यथार्थता का ज्ञान कराऊँ, जिससे बेचारा उसके चक्कर में फंसकर और न ठगा जाय । ऐसा सोचकर मनीषी ने मध्यमबुद्धि को एकान्त में ले जाकर गुप्त रूप से कहा- 'भाई ! यह स्पर्शन अच्छा व्यक्ति नहीं है। इसे तो विषयाभिलाष ने लोगों को ठगने के लिए यहाँ भेजा है और यह हर घड़ी लोगों को ठगने का कार्य ही किया करता है।' जब मध्यमबुद्धि ने इस सम्बन्ध में विस्तार से पूछा तब मनीषी ने स्पर्शन के मूल के सम्बन्ध में जो बात बोध और प्रभाव से सुनी थी वह संपूर्ण कथा आदि से अन्त तक कह सुनाई । यह सब वृत्तान्त सुनकर मध्यमबुद्धि ने मन में विचार किया कि स्पर्शन का मुझ पर कितना प्रेमभाव है यह मैंने स्वयं अनुभव किया है। फिर इसकी शक्ति भी अचित्य है और यह सुख का हेतु भी है, यह सब मैंने स्वयं देखा है पर यह मनीषी भी तो कभी गलत बात नहीं कहता ! क्या करना चाहिये ? मैं नहीं जानता कि इसमें सच्चाई क्या है ? और ऐसी स्थिति में मुझे इस प्रकार संकल्पविकल्प करने से क्या लाभ ? माताजी के पास जाकर उनसे ही सब बात पूछना ठीक है । फिर वे जैसी आज्ञा देंगी वैसा ही मैं आचरण करूंगा। मध्यमबुद्धि का माता से प्रश्न और उत्तर ऐसा विचार कर मध्यमबुद्धि अपनी माता सामान्यरूपा के पास पाया और चरण-स्पर्श कर नमन किया। उसने उसे आशीष दी। मध्यमबुद्धि उसके पास भूमि पर बैठा। फिर उसने स्पर्शन के सम्बन्ध में सब वृत्तान्त अपनी माता को कह सुनाया । सब बात सुनकर सामान्यरूपा ने कहा-वत्स ! अभी तो तुझे स्पर्शन और मनीषी दोनों के वचनों के अनुसार ही प्रवृत्ति करनी चाहिये, जिससे तू दोनों का अविरोधी बनकर मध्यस्थ बना रह सकेगा। बाद में जब तुझे इस सम्बन्ध में विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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