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प्रस्ताव ३ : स्पर्शन-मूलशुद्धि
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मेरे स्वामी के पास जाकर ज्ञात सब वृत्तान्त वरिणत कर दूं जिससे वे स्वयं सब यथार्थता समझ लेंगे। ऐसा विचार कर मैं आपके समीप आया हूँ। (आर्य ! मेरे मन में यह दुविधा है कि यहाँ तो भवजन्तु को सदागम ने निर्वृति नगर में भेजा और वहाँ रागकेसरी राजा के पास प्रार्थना-पत्र आया कि सन्तोष नामक चोर सारे लोगों को निर्वृत्ति नगर में ले जा रहा है, इसमें क्या रहस्य है ?) अब सब वृत्तान्त जानकर आपको जैसा योग्य लगे वेसी आज्ञा दें। प्रभाव का आभार
इस विस्तृत विवरण को सुनकर बोध बहुत प्रसन्न होकर बोलाप्रभाव ! तूने अत्यधिक प्रशस्य कार्य किया। फिर वे दोनों साथ-साथ राजकुमार मनीषी के पास आये और नमस्कार के पश्चात् प्रभाव ने स्पर्शन के बारे में जो विस्तृत जानकारी प्राप्त की थी वह सब मनीषी को कह सुनाई । राजकुमार यह सब वृतान्त सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और इतनी जानकारी प्राप्त करने में प्रभाव ने जो कष्ट उठाया उसके लिये उसका आदर सत्कार किया।
५. स्पर्शन की योगशक्ति
एक दिन मनीषी और स्पर्शन साथ-साथ बैठे थे, तब अवसर देखकर कुमार मनीषी ने स्पर्शन से पूछा-भाई स्पर्शन ! तुझे तेरे परममित्र भवजन्तु से अलग कराने में सदागम का ही हाथ था * या उस समय उसके साथ और भी कोई था ? स्पर्शन को सन्तोष का महाभय
स्पर्शन--आर्य मनीषी ! उनके साथ एक और भी था, पर अब उस बात को जाने दीजिये। मुझे उस पापी, क्रूर कर्म करने वाले से इतना डर लगता है कि मैं उसका नाम भी नहीं लेना चाहता। सदागम तो भवजन्तु को केवल मुझ से दूर रहने का उपदेश ही देता था, पर मुझे अनेक प्रकार के दुःख देने वाला तो सदागम का एक सेवक ही था जो महाघातक कार्य करता था और अपने क्रूर कर्मों से मुझे दुःखी करता था। वही भवजन्तु को मुझ से अलग करता था और मेरे विरुद्ध उसे उकसाता था। उस पापी अनुचर ने ही मेरे मित्र भवजन्तु को शरीरप्रसाद से बाहर निकाल कर निर्वृत्ति नगर में पहुँचा दिया। इन सब घटनाओं का कारण वह अनुचर हो था । सदागम तो मात्र उपदेश देता था। .
मनीषी-पर, भाई ! उस अनुचर का नाम क्या था ? यह तो बता ।
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