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________________ प्रस्तावना संस्कृत भाषा के भी वे उद्भट विद्वान् हैं। और उनमें, स्व-सिद्धान्त प्रतिपादन की स्फूर्त-सामर्थ्य के साथ-साथ पाण्डित्य-प्रदर्शन का भी विलक्षण-सामर्थ्य है । पण्डित वर्ग की इस प्रतिद्वन्द्विता को देखते हुए, सम्भवत: जन-साधारण में भी, संस्कृत के अध्ययन और ज्ञान का विशेष शौक उभरा होगा। जिसे लक्ष्य करके भी तत्कालीन पण्डित वर्ग ने अपने सिद्धान्तों और मन्तव्यों को प्रकट करने में, लोकमानस के अनुरूप सरल-संस्कृत को अपने ग्रन्थों के प्ररणयन की भाषा के रूप में स्वीकार किया । सिद्धर्षि, इस युगीन स्थिति से पूर्णतः परिचित प्रतीत होते हैं । इसका ज्ञान, उनके स्वयं के कथन से होता है। उन्होंने स्वीकार किया है कि संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं को, उनके ग्रन्थ-रचनाकाल में, प्रधानता प्राप्त थी। किन्तु पण्डित वर्ग में, संस्कृत भाषा को विशेष समादर प्राप्त था । प्राकृत-भाषा को इस समय के बच्चे तक भलीभांति समझते थे । जन-साधारण को बोध कराने की भी इसमें प्रबल सामर्थ्य है। फिर भी, यह प्राकृत भाषा, विद्वानों को अच्छी नहीं लगती। शायद, इसीलिए वे (पण्डित-जन) प्राकृत भाषा में बोल-चाल नहीं करते ।। सिद्धर्षि द्वारा व्यक्त इन विचारों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि 'उपमिति-भवप्रपञ्च कथा' के रचना काल में, जनसाधारण के रोजमर्रा की जिन्दगी का अनिवार्य बोल-चाल प्राकृतमय था। इसलिए, सिद्धर्षि चाहते थे कि अपनी इस कथा को प्राकृत भाषा में लिखा जाये । ऐसा करने में, उन्हें यह आशंका भयभीत किये रही'प्राकृत-भाषा में उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा लिखने पर, उन्हें पण्डित वर्ग में समादर सुलभ नहीं हो पायेगा। तभी तो उन्हें यह मान कर चलना पड़ा-सरल संस्कृत भाषा का प्रयोग, एक ऐसा उपाय है, जिससे, तत्कालीन जन साधारण को भी इस कथा को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी, और ग्रन्थकार को भी पण्डित वर्ग के उपेक्षाभाव का शिकार न बनना पड़ेगा। इस मध्यम मार्ग का निश्चय हृढ़ करके, उन्होंने यह निर्णय लिया कि सभी लोगों का-जनसाधारण और पण्डित वर्ग का भी-मनोरंजन हो, ऐसा उपाय (सरल संस्कृत भाषा के प्रयोग की सामर्थ्य) होने के कारण, इन सबकी अपेक्षाओं/अनुरोधों को दृष्टिगत करते हुये, मैंने इस ग्रन्थ की रचना संस्कृत भाषा में की है। १. संस्कृता प्राकृता चेति भाषे प्राधान्यमहतः । तत्रापि संस्कृता तावत् दुर्विदग्धहदि स्थिता ।। बालानामपि सद्बोधकारिणी कर्णपेशला । तथापि प्राकृता भाषा न तेषामभिभाषते ॥ -उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा, प्रथम प्रस्ताव १. उपाये सति कर्त्तव्यं सर्वेषां चित्तरञ्जनम् । अतस्तदनुरोधेन संस्कृतेयं करिष्यते ॥ -वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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