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________________ प्रस्ताव २ : सदागम का परिचय पंजे से तत्काल छुड़ाने वाला, अविरति रूप कचरा और लील को धोने वाला, मन वचन काया के दुष्ट योगों से छुटकारा दिलवाने वाला और शब्दादि पाँच चोरों द्वारा प्राणी के धर्मधन को लूटने पर उनके चंगुल से छुड़ाने वाला भी यही पूज्य पुरुष है, अन्य कोई समर्थ नहीं है । महाघोर नरक के दुःखों से रक्षण करने वाला, पशुत्व (तिर्यंच गति) के दुःखों से रक्षण करने वाला तुच्छ मनुष्यता के अनेक दुःखों का विच्छेदक, अधम असुरपन के मानसिक संतापों का नाशक, अज्ञान-वृक्ष का * उच्छेद करने में कुठार के समान महानिद्रा को भगाने वाला, प्राणियों का प्रतिबोधक, स्वाभाविक आनन्द का सच्चा कारण, और सुख-दुःख रूप अनुभव की मिथ्या बुद्धि का विनाशक भी यही महापुरुष है । प्रबल क्रोधरूपी अग्नि का शमन करने में जल के समान, मानरूपी महापर्वत को चूर्ण करने में वज्र के समान, मायारूपी विशाल बाघिन का नाश करने में शरभ के समान और महालोभरूप महासागर का शोषण करने में वडवानल के समान भी यही है । हास्यविकार को प्रगाढ़ता के साथ शमन करने में सक्षम, मोहनीय कर्म के उदय से होने वाली रति का नाशक, पीडा तथा भय से ग्रस्त प्राणियों के लिए अमृत समान और भ्रान्त एवं भयाकुल प्राणियों के संरक्षण में समर्थ भी यही है। शोक से हिम्मत हारने वालों प्राणियों को आश्वासन देने वाला, जुगुप्सा आदि विकारों को पूर्णरूप से शमन करने वाला, कामरूप पिशाच को दृढ़ता के साथ उच्चाटन करने में पटु और मिथ्यात्व रूप अन्धकार को ध्वस्त करने में प्रचण्ड सूर्य के समान भी यही है। चार प्रकार के जीवित (आयु) का उच्छेदन करने वाला भी यही महापुरुष है, क्योंकि प्राणियों का जहाँ जन्म-मरण न हो ऐसे शिवलोक में ले जाने वाला भी यही है। शुभ-अशुभ नाम कर्म की प्रकृतियों से होने वाली लोक विडम्बना को यह महात्मा अशरीरी स्थान प्राप्त करवाकर काट फेंकता है। अपने भक्तों को अक्षय, अव्यय सर्वोत्तमता प्राप्त करवाकर, ऊँच-नीच गोत्र से होने वाली विडम्बना का उच्छेद करता है। दान, महावीर्य, योग आदि शक्तिपुंज प्राप्ति का कारणभूत भी यही सदागम है। जो अधम और भाग्यहीन पुरुष महापापी होते हैं और जिन्हें इन महापुरुष के नाम के प्रति सन्मान नहीं होता, ऐसे प्राणियों को निरन्तर कर्मपरिणाम महाराजा उपर्युक्त अनेक प्रकार से विडंबित करता है और उनसे संसार नाटक करवाता है । जिनका थोड़े समय में कल्याण होने वाला होता है ऐसे पुण्यशाली उत्तम पुरुष बहुत आदरपूर्वक सदागम का निर्देश मानते हैं और सम्मानपूर्वक उसकी आज्ञानुसार आचरण करते हैं। फलतः वे अनेक प्रकार की कदर्थना करने वाले कर्मपरिणाम महाराजा की थोड़ी भी परवाह नहीं करते और उसका अपमान कर, संसार-नाटक से मुक्त होकर, निवृत्ति नगर में पहुँच कर वहाँ आनन्द पूर्वक रहते हैं। कदाचित् वे कर्मपरिणाम महाराजा के प्रदेश में रह भी जाएं तब भी किसी प्रकार की चिंता किए बिना वे सदागम की कृपा से कर्मपरिणाम * पृष्ठ ११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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