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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध धर्म की निन्दा करता है, धर्मगुरुत्रों के मर्मस्थानों का उद्घाटन करता है, झूठे विवाद खड़े करता है और पग-पग पर गुरु का अपमान करता है ।
पुनः यह जीव सोचता है :-अपनी मान्यता को पुष्ट करने वाले ग्रन्थों का इन्होंने पहले से ही अच्छी तरह से निर्माण कर रखा है । ऐसे शास्त्र इन श्रमणों के पास होने से मैं इनको पराजित करने में समर्थ नहीं हो सकता। अब ये मायावी झूठे विकल्पों के द्वारा मायाजाल फैलाकर, मुझे ठगकर, मेरी आत्मा को स्वयं का भक्ष्य बनायेंगे। अतएव पहले से ही इनका सम्पर्क छोड़ देना चाहिये, ये मेरे घर पर आते हों तो रोक देना चाहिये, मार्ग में मिल भी जाएँ तो संभाषण नहीं करना चाहिये और इनका तो नाम भी नहीं सुनना चाहिये । इस प्रकार महामोहग्रस्त यह प्राणी कुत्सित अन्न के समान धन, विषय और स्त्री आदि में गाढ़ासक्ति धारण करता है और इसके संरक्षण में ही रात-दिन लगा रहता है। इसी कारण सच्चे उपदेशक गुरुओं को भी यह जीव मायावी और ठग समझ लेता है और रात-दिन रौद्रध्यान में डूबा रहता है। इन कुविचारों से जब इस जीव की विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है तब सद्गुरु इस जीव को जमीन में गड़े हुए खड़े लकड़ी के खम्भे (स्तम्भ) की कील के समान समझते हैं। जब जीव विवेकभ्रष्ट और निश्चेष्ट सा होता है तब धर्माचार्य कृपापूर्वक स्वादिष्ट परमान्न भोजन के तुल्य श्रेष्ठ अनुष्ठान करने का उपदेश देते हैं परन्तु बेचारा पामर जीव उसको समझ नहीं पाता । इस जीव की ऐसी दयनीय स्थिति को देखकर विवेकीजनों को आश्चर्य होता है कि विषय, स्त्री, धनादि जो नरक के गड्ढे में गिराने वाले हैं उन पर प्रगाढ़ आसक्ति को रखने के कारण यह जीव, धर्माचार्य प्रतिपादित मोक्ष सुख को प्रदान करने वाले श्रेष्ठ अनुष्ठानों का तिरस्कार करता है तथा उन सत्कृत्यो की ओर अपना विरोध प्रकट करता है ।
[ १५ ] तीन औषधियाँ : निष्फल प्रयत्न
पूर्व में कथा प्रसंग में कहा जा चुका है :- "ऐसी असम्भावित घटना घटते देखकर पाकशालाध्यक्ष ने अपने मन में सोचा - इस गरीब को प्रत्यक्षतः सुन्दर खीर का भोजन देने पर भी न तो वह उसे ले ही रहा है, न कोई उत्तर ही दे रहा है, इसका क्या कारण है ? उल्टा इसका मुह सूख गया है, आँखें बन्द हो गई हैं और इतना मोहग्रसित हो गया है कि मानो इसका सर्वस्व लुट गया हो। इस प्रकार यह लकड़ी के कील की तरह निश्चेष्ट हो गया है। इससे लगता है कि यह पापात्मा ऐसे कल्याणकारी खीर के भोजन के योग्य नहीं है।" यह कथन इस जीव के साथ पूर्णतया घटित होता है। सद्गुरु इस प्रकार विस्तार पूर्वक धर्मदेशना दें और अन्य * पृष्ठ ६३
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