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उपमिति भव-प्रपंच कथा
शास्त्रों के रहस्य को प्रतिपादित करने वाले ग्रन्थों के वेत्ता और उन रहस्यों पर विचार करने में कुशल ( चतुर ) होते हैं । जैसे समस्त नीतिशास्त्रों के पारंगत मन्त्रिगण अपने बुद्धि-कौशल से राज्य के समस्त अंगों पर समीक्षा करते रहते हैं वैसे ही ये उपाध्याय अपने असाधारण बुद्धि - वंभव से सर्वज्ञ - शासन के समस्त अंगों की समय-समय पर समीक्षा करते रहते हैं । अतएव ये उपाध्याय अमात्य शब्द को सम्यक् प्रकार से चरितार्थ करते हुए शोभित होते हैं ।
सेनापति
पूर्व में कह चुके हैं कि 'युद्ध के मैदान में अपने समक्ष आये हुए साक्षात् यमराज को देखकर भी जो विचलित नहीं होते थे, ऐसे असंख्य योद्धा वहाँ सेवारत थे ।' इसकी योजना इस प्रकार है :- गीतार्थ- नृषभों (सम्पूर्ण ज्ञान के धारक, षड्दर्शनवेत्ता, गरण के नियन्त्रक और धौरेय वृषभ के समान शासन का भार वहन करने में समर्थ साधुओं) को यहाँ महायोद्धा - सेनापति समझें । जिनका अन्तःकरण सत्व ( तप, श्रुत, सत्व, एकत्व, बल) की विशिष्ट भावनाओं से वासित है, देवों द्वारा महाभयंकर उपसर्ग ( उपद्रव) करने पर भी जो किंचित् भी क्षुब्ध नहीं होते और जो घोर परीषहों से तनिक भी भयभीत नहीं होते । इनके सम्बन्ध में अधिक क्या कहें ? यमराज के समान भयंकर उपद्रव करने वालों को सामने देखकर जो तनिक भी त्रस्त नहीं होते । जैसे महारथी संग्राम के अन्त को विजय में परिरणत करते हैं वैसे ही ये गीतार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को लक्ष्य में रखकर गच्छ, कुल, गरण और संघ को मोक्ष प्राप्ति करवाते हुए संसार-समर का अन्त ला देते हैं । अतएव इन गीतार्थ वृषभों को महायोद्धा सेनापति कहा जाता है ।
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नियुक्तक (कामदार)
राजमन्दिर - प्रसंग में पहले कहा जा चुका है- 'इस विशाल राजमन्दिर अनेक व्यक्ति नियुक्तक ( कामदार ) थे जो सर्वदा करोड़ों नगरों, असंख्य ग्रामों और अनेक परिवारों का पालन करते थे तथा शासन - प्रबन्ध संचालित करते थे ।' इन कामदारों को यहाँ सर्वज्ञ शासन में गरण -चिन्तक समझें । जो बाल, वृद्ध, ग्लान, प्राघूर्ण ( अतिथि साधु ) आदि की सहिष्णुभाव से परिपालन करने योग्य अनेक पुरुषों से परिवृत, कुल, गरण और संघरूपी करोड़ों नगर और गच्छ रूप असंख्य ग्राम एवं आकरों में गीतार्थ होने के कारण उत्सर्ग और अपवाद के ज्ञाता, योग्य स्थान पर कार्यक्षम व्यक्ति को नियुक्त करने में चतुर और उनका पालन करने में समर्थ होते हैं । जो समस्त कालों में निराकुल होकर प्रासुक और ऐषरणीय भक्त (भोजन), पान, , उपकरण (वस्त्र - पात्रादि ) एवं उपाश्रय श्रादि के सम्पादन द्वारा शासनतन्त्र
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