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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
द्वारपाल नियुक्त था। उस अत्यन्त करुणाजनक भिखारी को देखकर द्वारपाल ने कृपाकर उसे अपूर्व राजमन्दिर में घुसने दिया।' इस कथन की संगति इस प्रकार हैकदाचित् यह जीव 'घर्षण-घूर्णन' न्याय से जब यथाप्रवत्तिकरण करता है तब आयुष्य कर्म को छोड़कर, शेष सातों कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति को कम कर, सब कर्मों को एक कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति तक ले आता है और सभी कर्मों की अधिक स्थिति का क्षय करता है। जब यह जीव सात कर्मों की एक कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति में से भी कथंचित् स्थिति का क्षय कर लेता है तब प्राचारांग से लेकर दृष्टिवाद पर्यन्त द्वादशांग आगम रूप अथवा उसके आधारभूत चतुर्विध साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप श्री संघ के लक्षण वाला आत्मनपति सुस्थित महाराज के राजमन्दिर को प्राप्त करता है। इस सर्वज्ञ शासन रूपी मन्दिर का स्वकर्मविवर अर्थात् स्वयं के कर्मों का विच्छेदक (विनाशक) जो कि यथार्थ नाम और गूरण का धारक है, वही द्वारपाल होने की योग्यता रखता है। यही स्वकर्मविवर इस मन्दिर में प्रविष्ट होने में सहायक होता है। यहाँ राग, द्वेष, मोह आदि और भी अनेक द्वारपाल हैं किन्तु ये द्वारपाल इस जीव को राजमन्दिर में घुसने नहीं देते, अपितु अनेक प्रकार के रोड़े अटकाते हैं। यह जीव सर्वज्ञदेव के मन्दिर के द्वार के समीप अनन्तवार पाया और आता रहता है, किन्तु राग, द्वेष, मोह आदि द्वारपाल उसको धक्का देकर दूर भगा देते हैं। कदाचित् ये राग-द्वषादि द्वारपाल इस जीव को दरवाजे के भीतर तो आने देते हैं, परन्तु वास्तविक रूप में यह जीव प्रविष्ट हुआ, ऐसा प्रतीत नहीं होता। क्योंकि राग, द्वेष, मोह आदि से आकुल-व्याकुल चित्त वाले और बाहर से मुनि अथवा श्रावक के चिह्नों को धारण करने वाले कदाचित् सर्वज्ञ-मन्दिर के भीतर प्रवेश भी कर जाएँ तो भी वे सर्वज्ञ-शासन मन्दिर के बाहिर ही हैं, ऐसा समझे । अर्थात् बाह्य दृष्टि से साधु अथवा श्रावक का आडम्बर रखने वाले साधना पथ की ओर अग्रसर नहीं हो सकते, अतएव वस्तुतः वे सर्वज्ञशासन भवन के बाहिर ही हैं। राजभवन के द्वार तक पहुँचने पर, स्वकर्मविवर द्वारपाल इस जीव को ग्रन्थिभेद करवाकर सर्वज्ञ-शासन मन्दिर में प्रवेश करवाता है। इस प्रकार इस जीव का मन्दिर-प्रवेश युक्तिसंगत प्रतीत होता है ।
। [८] राजमन्दिर का वैभव
निष्पूण्यक के कथानक में कहा गया था- "इस दरिद्री ने पूर्व में कभी नहीं देखा ऐसा विविध प्रकार के ऐश्वर्य और समृद्धि से परिपूर्ण, राजा, प्रधान (मंत्री), सेनापति, कामदार और कोतवाल आदि से अधिष्ठित, वृद्धजनों से युक्त, सैन्यवृन्द से पाकीर्ण, विलासवती सुन्दर ललनामों से पूर्ण, उपमा रहित, ॐ अत्युत्तम
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