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________________ प्रस्ताव ८ : पुण्डरीक और समन्तभद्र ३८३ के यहाँ हुया है तथापि यह अधिक समय तक राजभवन में नहीं रहेगा। बड़ा होकर दीक्षा लेगा और सर्वज्ञ प्ररूपित आगम-शास्त्रों का धारक बनेगा। यह सुनकर महाभद्रा अपने उपाश्रय में वापस लौटी। इधर राजपुत्र का नाम पुण्डरीक रखा गया और नामकरण महोत्सव मनाया गया। सुललिता के सन्देह का निराकरण इधर एक बार सुललिता घूमती हुई, अनेक प्रकार के कुतूहल देखती हुई चित्तरम उद्यान में आ पहुँची। वहाँ उसने समन्तभद्राचार्य को श्रीसंघ के मध्य में नवीन उत्पन्न राजपुत्र के गुणों का वर्णन करते हुए सुना । आचार्य कह रहे थे-'इसके अनुकूल बने कर्मपरिणाम महाराजा और कालपरिणति महारानी ने पुण्डरीक को मनुजनगरी में उत्पन्न किया है । यह सर्वोत्तम गुणों से युक्त बनेगा। भव्यपुरुष जब सुमति/प्रशस्त बुद्धि वाला बन जाता है तब वह सर्वोत्तम गुणों का भण्डार बन जाता है, इसमें संदेह क्या है ?' सुललिता ने आचार्य के इस कथन को सुना । आचार्य ने यह बात बहुत से लोगों के समक्ष कही थी, जिसे सुनकर लोग अत्यन्त हर्षित हुए। उपर्युक्त कथन सुनकर सुललिता को संदेह हुआ कि, 'इस राजकुमार के माता-पिता कालपरिणति और कर्मपरिणाम कैसे हो सकते हैं ? फिर वह मनुजगति में कैसे उत्पन्न हो सकता है ? भविष्य में होने वाले गुणों का वर्णन आचार्य अभी कैसे कर सकते हैं ?' वहाँ से जाकर उसने महाभद्रा प्रवर्तिनी को अपने मन की शंका कह सुनाई । महाभद्रा ने सोचा कि सुललिता बहुत भोली है । यह सोचकर कि इसे प्रतिबोधित करने का यह अच्छा अवसर है । महाभद्रा ने कहा-भद्रे ! कर्मपरिणाम और कालपरिणति इसी के ही नहीं, संसारस्थ सभी जीवों के माता-पिता हैं । यह बात उन्होंने उसे युक्तिपूर्वक भली प्रकार समझाई। सदागम का परिचय फिर उन्हें ध्यान पाया कि इसकी सदागम के प्रति प्रीति उत्पन्न करनी चाहिये। यह सोचकर उसे जागत करने की शुभ भावना से वे बोलीं-बहिन ! लोगों के मध्य में जो बात कर रहे थे और जिनकी बात लोग ध्यान पूर्वक सुन रहे थे, उनका नाम सदागम है। तुमने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा होगा? इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं है कि ये महात्मा महान् शक्ति-सम्पन्न, विद्वान् और भूत-भविष्य के भावों के ज्ञाता हैं ।* मुझे भी इस विषय में इन महात्मा की कृपा से ही मालूम हुआ है। मेरा इनसे दीर्घकाल से परिचय है । वे अत्यन्त प्रभावशाली हैं। * पृष्ठ ७३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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