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________________ १४. पुराडरीक और समन्तभद्र पुण्डरीक-परिचय इस शंखपुर नगर में मेरे मामा श्रीगर्भ का राज्य था। उनकी रानी कमलिनी मेरी मामी थी और महाभद्रा प्रवर्तिनी की मौसी थी। इनके एक भी संतान नहीं थी ।* कमलिनी रानी ने पूत्र-प्राप्ति के लिये अनेक मनोतियां मनाई दान दिये, बूटियाँ खाई । गुणधारण के भव में मेरा जो मित्र कुलन्धर था, उसने अपने अगले जन्म में अनेक प्रकार के शुभ कार्य किये, अतः भवितव्यता ने कुलन्धर के जीव को कमलिनी रानी की कूख में प्रवेश करवाया। जिस रात को उसने रानी की कुक्षि में प्रवेश किया, उसी रात रानी को स्वप्न आया कि एक सर्वांगसुन्दर पुरुष उसके मुह से उसके शरीर में प्रविष्ट हुआ और बाहर निकला तथा किसी अन्य पुरुष के साथ चला गया। रानी ने अपने स्वप्न की बात राजा को कह सुनायी । स्वप्नवृत्तान्त सुनकर राजा को परम हर्ष हुआ, पर साथ में कुछ विषाद भी हुआ । वह बोला-देवि ! ऐसा लगता है कि तुम्हारे पुत्र होगा, पर कुछ समय बाद उसे किसी सुगुरु की प्राप्ति होगी और उनके उपदेश से प्रतिबोधित होकर वह दीक्षा ले लेगा। पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा-पूर्ति से रानी कमलिनी को अत्यन्त प्रसन्नता हुई, शेष बात उसने अनसुनी करदी। तीसरे महीने रानी को शुभ कार्य करने के मनोरथ (दोहले) उत्पन्न हुए, जिन सभी को राजा ने पूर्ण किया। समय पूर्ण होने पर रानी के पुत्रजन्म हुआ। राजा श्रीगर्भ परम सन्तुष्ट हुअा। सारे नगर और राज्य में पुत्र का जन्म-महोत्सव मनाया गया जिससे सभी लोगों को अत्यधिक आनन्द हुआ। समन्तभद्राचार्य का संकेत इधर समन्तभद्राचार्य को निर्मल केवलज्ञान प्राप्त हुना और विहार करते हुए वे शंखपुर नगर आ पहुँचे तथा चित्तरम उद्यान में ठहरे । नन्द सेठ की पौषधशाला में ठहरी हुई महाभद्रा साध्वी को जब पता लगा तो वे भी केवली महाराज को वन्दन करने उद्यान में पहुँची। सुललिता को प्राचार्य के पधारने के समाचार किसी कारण से नहीं लग सका और महाभद्रा उद्यान में प्राचार्य को वन्दन करने गई है, यह भी वह नहीं जान सकी। महाभद्रा जब आचार्य के वहाँ थी तभी किसी ने कहा कि 'राजा के पुत्र हुअा है।' यह सुनकर केवली भगवान् ने कहा-इस राजपुत्र ने पूर्व भव में अत्यधिक शुभ कार्यों का अभ्यास किया है। यद्यपि इसका जन्म राजा - - * पृष्ठ ७३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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