SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा होने की संभावना है, क्योंकि चित्त वृत्ति अटवी कुछ अधिक उज्ज्वल हुई लगती है। हम पर डाला गया घेरा कुछ कम हुआ है, शत्रु भी अपने से कुछ दूर चले गये हैं, अतः कर्मपरिणाम महाराजा को पूछ कर यदि वे आज्ञा दें तो पुत्री विद्या को लेकर शीघ्र संसारी जीव के पास चले जाओ। हमारे गुप्तचरों से मुझे अभी-अभी संदेश मिला है कि संसारी जीव कुमार गुणधारण अभी कन्दमुनि के समक्ष बैठा है, अतः यदि तुम अभी पुत्री को लेकर पहुँच जानोगे तो वह अवश्य तुम्हें स्वीकार कर लेगा। [१७१-१७६] सद्बोध मंत्री ने राजा के विचार सुने, उनके विषय में अपने मन में विचार किया और वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए योग्य निर्णय सोचकर कहा--- देव ! आपका कथन ठीक है, इसमें कोई संदेह नहीं, पर मेरे विचार से अभी इस विषय में थोड़ा कालक्षेप और करना चाहिये। योग्य अवसर की प्रतीक्षा करते हुए कुछ ढील देनी चाहिये; क्योंकि संसारी जीव के पास अभी कुछ समय उसके दो अन्तरंग मित्र पुण्योदय और सातावेदनीय रहने वाले हैं। अभी कुछ समय तक उसके ये दोनों मित्र उसे भोग फल देंगे। अभी उसे पुण्य का उदय बहुत भोगना शेष है और शब्दादि सुख का पूर्ण लाभ प्राप्त करना है । इन दोनों मित्रों का कुमार पर अधिक स्नेह है, अतः वे उसे विषय सुख का आस्वादन करवाना चाहते हैं। इसलिये अभी वे गुणधारण कुमार को आग्रह पूर्वक घर (संसार) में रखेंगे। फलतः जब तक संसारी जीव इन दोनों मित्रों के आग्रहानुसार आचरण करते हुए घर/संसार में रहकर शब्दादि स्थूल विषयों को सुख का कारण समझे तब तक विद्या को उसके पास ले जाना मुझे तो किसी प्रकार योग्य नहीं झुंचता । मेरा तो यह प्रस्ताव है कि अभी कुमार गृहिधर्म को उसकी पत्नी के साथ शीघ्र ही संसारी जीव के पास भेजना चाहिये। अभी संसारी जीव के समय और आस-पास के संयोगों को देखते हुए यदि कुमारश्री को सपरिवार वहाँ भेजा जाय तो वह अधिक समुचित होगा और जिस कार्य को सिद्ध करने की आपकी इच्छा है, उसमें साधक भी आगे जाकर वही बनेंगे । हे देव ! कुमार की पत्नी सद्गुणरक्तता तो संसारी जीव को अत्यन्त इष्ट होगी । मुझे लगता है कि कुमार के वहाँ जाने से गुणधारण भावपूर्वक उनका आदर करेगा और उन्हें अपने सम्बन्धी के रूप में स्वीकार कर लेगा। [१७७-१८४] पहले भी जब-जब संसारी जीव के पास सदागम था तब-तब उसने अपने कुमार गृहिधर्म को बहुत बार द्रव्य (उपचार) से देखा है। फिर सम्यग्दर्शन भी अपने कुमार गृहिधर्म को अपने साथ लेकर संसारी जीव के पास जाता रहा है, क्योंकि अपने सेनापति को गृहिधर्म कुमार पर अत्यधिक स्नेह है। सम्यग्दर्शन के संसारी जीव के पास जाने के बाद दो से नौ पल्योपम पृथकत्व काल में भी उसने * भावपूर्वक गहिधर्म को अपनी संगति में रखना स्वीकार किया था। पहले जब-जब • पृष्ठ ७०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy