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प्रस्ताव ८ : कन्दमुनि : राज्य एवं गृहिधर्म-प्राप्ति
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संसारी जीव ने सदागम और सम्यग्दर्शन को पुनः-पुनः देखा है, तब-तब उसने गहिधर्म को भावतः स्वीकार किया है और ऐसी परिस्थिति असंख्य बार आई है । हे देव ! वर्तमान में गुणधारण मेरे अथवा सदागम के अधिक निकट आ रहा है, अतः गहिधर्म का उसके पास जाना विशेष अनुकूल रहेगा। अतः मेरे विचार में अभी कुमार गहिधर्म उसके पास जाये और उसे अपने गुणों से विशेष प्रसन्न करे । जब वह प्रसन्न हो जायगा तब मेरे और मेरे जैसे अन्य लोगों का भी उसके पास जाने का समय आ जायेगा। [१८५-१६०]
देव ! दूसरी बात यह है कि अभी कुमार गृहिधर्म के वहाँ जाने से वह अपने शत्रु महामोह आदि को अधिक त्रास दे सकेगा और चित्तवृत्ति अटवी विशेष रूप से अधिक शुद्ध होगी। गृहिधर्म वहाँ होने से वह बार-बार संसारी जीव को प्रेरित करता रहेगा जिससे वह हमें देखने की इच्छा से हमारी ओर उन्मुख होगा। उसकी आत्मा को अधिकाधिक शान्ति और सुख प्राप्त होगा, उसके मन में अधिकाधिक संतोष होगा, उसके कर्म निर्बल बनेंगे और उसके संसार-भ्रमण का भय दूर हो जायगा । गहिधर्म के ये चार बड़े गुण हैं। अतएव इन परिस्थितियों में अभी गहिधर्म को वहाँ भेज देना चाहिये। फिर अवसर देखकर हम सब उसके पास चलेंगे। [१६१-१६४] गहिधर्म समागम
चारित्रधर्मराज को सद्बोध मंत्री का परामर्श समयानुसार उचित लगा और उसके विचार नीतिसम्मत एवं निर्मल लगे, अत: उन्होंने शीघ्र ही व्यवस्था कर अपने छोटे पुत्र गृहिधर्म को निर्देश दिया। इस कार्य के लिये पहले कर्मपरिणाम महाराजा की आज्ञा ली गई । तत्पश्चात् गहिधर्म मेरे (संसारी जीव गुणधारण के) पास पाने के लिये निकल पड़ा । जिस समय मैं पाह्लादमन्दिर उद्यान में कन्दमुनि के समक्ष बैठकर व्याख्यान सुन रहा था, उसी समय वह मेरे पास आ पहुँचा और मुनि ने मुझे श्रावकधर्म का उपदेश देकर उसे प्रकट किया। उसकी पत्नी सद्गुण रक्तता और उसके बारह कर्मचारी (श्रावक के १२ व्रत) भी उसके साथ थे। मैंने उन सब को बान्धव-बुद्धि से मुनि महाराज के समक्ष ही स्वीकार किया, स्वागत किया और उन सब का यथोचित आदर किया। मेरे मित्र कुलन्धर ने भी उसी समय गृहिधर्म, उसकी पत्नी और उसके १२ कर्मचारियों को अन्तरंग से स्वीकार किया। इस समय हमें अतिशय आनन्द प्राप्त हुआ। [१६५-१६६] स्वप्नफल-पृच्छा
गहिधर्म को स्वीकार करने के बाद मैंने कन्दमुनि से स्वप्न में आये चार और पाँच व्यक्तियों के विषय में पूछा। कनकोदर और कुलन्धर को जो स्वप्न आये थे उनके अन्तर को बताते हुए उन स्वप्नों का पूरा वृत्तान्त मुनिराज को कह सुनाया और उसके भावार्थ को जानने की जिज्ञासा उनके समक्ष प्रस्तुत की।
__ कन्दमुनि बोले-भाई गुणधारण ! तेरे स्वप्नों का भावार्थ अतीन्द्रिय ज्ञानी गुरु के अतिरिक्त कोई नहीं बता सकता । मेरे गुरु निर्मलसूरि केवलज्ञान रूपी सूर्य For Private & Personal Use Only
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