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________________ प्रस्ताव ७ : संसार-बाजार (प्रथमचक्र) २६१ तब यह धूल उसके शरीर पर अधिक चिपक जाती है और उसका सारा शरीर धूलि-धूसरित हो जाता है। एक तो बन्दर वैसे ही चञ्चल होता है, फिर यह जहरीली धूल शरीरवेधक होने से उसके शरीर में घाव कर देती है, शरीर क्षीण होकर शिथिल हो जाता है, उसका मध्य भाग चारों तरफ से फट जाता है। जहरीली धूल सारे शरीर में और विशेष रूप से मध्यभाग में असर करती है जिससे सारा शरीर जलने लगता है । फलस्वरूप उसका पूरा शरीर काला हो जाता है और कहीं कहीं से लाल भी दिखाई देने लगता है। जब वह वापस अपने गर्भगह/चौक में जाता है तब पहले बताये गये चूहे मच्छर आदि के उपद्रव फिर होने लगते हैं। इन उपद्रवों का आक्रमण उस पर प्रति क्षण अधिकाधिक उग्र होते रहते हैं।। रक्षरण के उपाय भद्र ! इस चित्त रूपी बन्दर के बच्चे को इन उपद्रवों से बचाने का सीधा उपाय यह है कि स्ववीर्य आत्मशक्ति नामक अपने हाथ में अप्रमाद नामक वज्रदण्ड लेकर पांचों द्वारों के पास खड़े रहना और जब-जब वह बन्दर का बच्चा इन्द्रिय रूपी झरोखों से विषय रूपी विषवृक्ष के फलों को खाने की इच्छा से बाहर आवे तब-तब उसे वज्र दण्ड दिखा कर, फटकार कर बाहर आने से रोकना । फिर भी यह चित्त बन्दर अधिक चञ्चल होने से यदि बाहर आ जाय तो उसे जोर से डरा धमकाकर वापस लौटा देना । बाहर आने पर रोक लगी होने से उसकी विषवृक्ष रूपी आम्र फल खाने की इच्छा निवृत्त हो जायगी और भोग-स्नेह-जल से भीगकर जो सर्दी हो गई थी वह दूर हो जायगी। * शरीर सूखेगा और उसमें गर्मी आयेगी। शरीर के सूखने से उस पर लगी हुई धूल प्रति क्षण नीचे गिरने लगेगी, उसके घाव भरने लगेंगे, शरीर की क्षीणता दूर होगी, शरीर काला पड़ने से रुकेगा और झूठी लाली नष्ट होगी। फिर से उसके शरीर पर धवलता (सफेदी) आयेगी, शारीरिक स्थिरता बढ़ेगी और दर्शनीय सुन्दर रूप बनेगा। इसके बाद गर्भगृह में भी उसे उपर्युक्त उपद्रव अधिक तंग नहीं करेंगे। फिर कमरे में रहे हुए चूहे, बिल्ली, करोलिया, मच्छर आदि का भी तुझे इसी अप्रमाद वज्रदण्ड से चूरा-चूरा कर देना चाहिये । तदनन्तर चौक के रास्ते से यदि बन्दर का बच्चा बाहर निकलेगा तब भी उसको किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा । हे भद्र ! यही उसकी रक्षा का उपाय है। मैंने गुरुजी से पूछा-भदन्त ! इस बन्दर के बच्चे की रक्षा करने से मुझे क्या लाभ होगा? .. गुरुजी ने कहा-भद्र ! तुम्हें शिवालय मठ बहुत पसन्द आया था और वहाँ जाने की तुम्हारी इच्छा हुई थी। इस मठ में पहुँचने का मुख्य उपाय चित्तरूपी इस बन्दर के बच्चे की सुरक्षा है। इसकी भली प्रकार सरक्षा करने से यह बिना * पृष्ठ ६४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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