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________________ २३८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा हे अगृहीतसंकेता ! उस समय भी मैं तो कर्मभार से अधिक आच्छादित और भारी हो रहा था, अतः अकलंक द्वारा प्रस्तुत विचार मुझे रुचिकर नहीं लगे । मैंने उसके विचारों की उपेक्षा ही की। [३०३] ६. चार व्यापारियों की कथा हे अगृहीतसंकेता! मैं उदार चरित्र अकलंक के साथ वहाँ बैठे हुए मुनियों में से पाँचवें मुनि के पास गया । वन्दन कर हम दोनों मुनि के समक्ष बैठे, तब मुनि ने सामान्य प्रकार से उपदेश दिया। इसके पश्चात् अकलंक ने मुनि से पूछा-भगवन् ! आप संसार से विरक्त क्यों हए ? वैराग्य का क्या कारण है ? मैं जानना चाहता हूँ। [३०४-३०५] मुनि-भाई ! सामने जो प्राचार्यप्रवर बैठे हैं उन्होंने मुझे एक कथा कही, जिसे सुनकर मुझे वैराग्य उत्पन्न हुआ और मैंने दीक्षा ग्रहण की। [३०६] __ अकलंक---महाराज ! ऐसे अनुपम वैराग्य का कारण बनने वाली कथा अवश्य ही अनुग्रह करके मुझे सुनाइये । [३०६] चार व्यापारियों की कथा ___ मुनि-अच्छा सुनो । वसन्तपुर नगर में सार्थवाहों के चार पुत्र रहते थे । ये चारों समवयस्क और समव्यसनी थे । इन चारों में प्रगाढ़ मैत्री थी। अन्यदा इन चारों को अनेक आवर्ती, जलचरों और अन्य अनेक सैकड़ों भयों से व्याप्त समुद्र पार कर व्यापार करने के लिये रत्नद्वीप जाने की इच्छा हुई । इन मित्रों के नाम क्रमशः चारु, योग्य, हितज्ञ और मूढ थे और जैसे इनके नाम थे वैसे ही उनमें गुण भी थे। चारों अपने-अपने जहाज लेकर रत्नद्वीप पहुँचे। रत्नद्वीप सब प्रकार के रत्नों की खान था। बिना पुण्य के इस द्वीप में पहुँचना ही कठिन था। भाग्यवान व्यक्ति ही इस सुन्दर द्वीप में पहुँच सकते हैं । इस द्वीप में पहुँच कर भी बिना परिश्रम के रत्न के ढेर प्राप्त नहीं होते । भोजन की सामग्री सामने परोसी हुई होने पर भी बिना हाथ हिलाये कौन भोजन कर पाता है ? [३०७-३१२] रत्नद्वीप में पहुँच कर चारु ने अन्य सब काम छोड़कर, कुछ शुद्ध मानसपूर्वक केवल रत्न एकत्रित करने का कार्य किया। वह बहुत विचक्षण था अत: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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