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________________ २२४ उपमिति-भव-प्रपंच कथा अधिक उद्धत होते हैं और वे हजारों प्रकार की विचित्र आवाजें करते रहते हैं। [१२०] __ मद्यशाला में नृत्य, गायन, विलास, मद्यपान, भोजन, दान, आभूषण और मान-अपमान की धमाल चलती ही रहती है । यहाँ अनेक विचित्र उलटी-सुलटी विचार-तरंगें चलती ही रहती हैं, जिससे यह मद्यशाला लोगों को चमत्कार का कारण प्रतीत होती है । [१२१] हे भद्र ! अनेक विध विभ्रम चेष्टाओं वाले रसिकजनों से सर्वदा सेवित और सर्व सामग्री से परिपूर्ण इस मद्यशाला को मैंने देखा । हे सौम्य ! लोक में ऐसा कोई नाटक या आश्चर्य नहीं जो मैंने इस मदिरालय में अनुभूत न किया हो। [१२२-१२३] मदिरालय के मुख्यतः निम्न तेरह विभाग हैं : १. यहाँ अनन्त लोग शराब के नशे में धुत्त पड़े रहते हैं। वे बेचारे न तो कुछ बोलते हैं, न कोई चेष्टा करते हैं और न कोई विचार करते हैं। वे किसी प्रकार का कोई लौकिक व्यवहार भी नहीं करते हैं, मात्र मृतप्रायः की तरह मूछित अवस्था में पड़े रहते हैं । [१२४-१२५] २. यहाँ दूसरे भी अनन्त लोग हैं। वे भी उपरोक्त के समान ही मूछित अवस्था में रहते हैं, पर वे * कभी-कभी बीच-बीच में कुछ-कुछ लौकिक व्यवहार करते हैं । [१२६] ३. यहाँ पृथ्वी और पानी आदि के रूप और प्राकृति धारण करने वाले असंख्य लोग उपरोक्त अवस्था में नशे में धुत्त पड़े रहते हैं । [१२७] ४. यहाँ असंख्य लोग ठस-ठूस कर मात्र मदिरा का स्वाद ही लिया करते हैं । ये न कुछ सूघते हैं न कुछ देखते हैं और न कुछ सुनते हैं। शून्यचित्त वाले ये लोग जमीन पर लोटते रहते हैं। नशे की घेन में जीभ से कुछ स्वाद लेते रहते हैं और कभी-कभी चिल्लाते रहते हैं। [१२८-१२६] ५. यहाँ पूर्वोक्त स्वरूप धारक असंख्य लोग ऐसे भी हैं जो केवल सूघते हैं, देख-सुन नहीं सकते [१३०] ६. यहाँ असंख्य लोग नशे में घूरते हुए प्रांखें खोल-खोल कर सामने पड़ी वस्तू को देखते तो हैं, पर सुनते नहीं । इनकी चेतना पर भी मदिरा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । [१३१] ७. यहाँ असंख्य लोग मदिरा के नशे में चेतना-शून्य हो गये हैं। इनके मन मर गये हैं इसलिये मनरहित माने जाते हैं । [१३२] ८. यहाँ असंख्य लोग स्पष्ट चेतना वाले तो हैं किन्तु सर्वदा अधिक नशे की अवस्था में होने के कारण वे दुष्ट शत्रुओं द्वारा बार-बार छेदे, भेदे और चीरे * पृष्ठ ६१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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