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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
अधिक उद्धत होते हैं और वे हजारों प्रकार की विचित्र आवाजें करते रहते हैं।
[१२०] __ मद्यशाला में नृत्य, गायन, विलास, मद्यपान, भोजन, दान, आभूषण और मान-अपमान की धमाल चलती ही रहती है । यहाँ अनेक विचित्र उलटी-सुलटी विचार-तरंगें चलती ही रहती हैं, जिससे यह मद्यशाला लोगों को चमत्कार का कारण प्रतीत होती है । [१२१]
हे भद्र ! अनेक विध विभ्रम चेष्टाओं वाले रसिकजनों से सर्वदा सेवित और सर्व सामग्री से परिपूर्ण इस मद्यशाला को मैंने देखा । हे सौम्य ! लोक में ऐसा कोई नाटक या आश्चर्य नहीं जो मैंने इस मदिरालय में अनुभूत न किया हो।
[१२२-१२३] मदिरालय के मुख्यतः निम्न तेरह विभाग हैं :
१. यहाँ अनन्त लोग शराब के नशे में धुत्त पड़े रहते हैं। वे बेचारे न तो कुछ बोलते हैं, न कोई चेष्टा करते हैं और न कोई विचार करते हैं। वे किसी प्रकार का कोई लौकिक व्यवहार भी नहीं करते हैं, मात्र मृतप्रायः की तरह मूछित अवस्था में पड़े रहते हैं । [१२४-१२५]
२. यहाँ दूसरे भी अनन्त लोग हैं। वे भी उपरोक्त के समान ही मूछित अवस्था में रहते हैं, पर वे * कभी-कभी बीच-बीच में कुछ-कुछ लौकिक व्यवहार करते हैं । [१२६]
३. यहाँ पृथ्वी और पानी आदि के रूप और प्राकृति धारण करने वाले असंख्य लोग उपरोक्त अवस्था में नशे में धुत्त पड़े रहते हैं । [१२७]
४. यहाँ असंख्य लोग ठस-ठूस कर मात्र मदिरा का स्वाद ही लिया करते हैं । ये न कुछ सूघते हैं न कुछ देखते हैं और न कुछ सुनते हैं। शून्यचित्त वाले ये लोग जमीन पर लोटते रहते हैं। नशे की घेन में जीभ से कुछ स्वाद लेते रहते हैं और कभी-कभी चिल्लाते रहते हैं। [१२८-१२६]
५. यहाँ पूर्वोक्त स्वरूप धारक असंख्य लोग ऐसे भी हैं जो केवल सूघते हैं, देख-सुन नहीं सकते [१३०]
६. यहाँ असंख्य लोग नशे में घूरते हुए प्रांखें खोल-खोल कर सामने पड़ी वस्तू को देखते तो हैं, पर सुनते नहीं । इनकी चेतना पर भी मदिरा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । [१३१]
७. यहाँ असंख्य लोग मदिरा के नशे में चेतना-शून्य हो गये हैं। इनके मन मर गये हैं इसलिये मनरहित माने जाते हैं । [१३२]
८. यहाँ असंख्य लोग स्पष्ट चेतना वाले तो हैं किन्तु सर्वदा अधिक नशे की अवस्था में होने के कारण वे दुष्ट शत्रुओं द्वारा बार-बार छेदे, भेदे और चीरे * पृष्ठ ६१७
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