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________________ ३२ वन में समय के अधोश्वर । एक बर्बर सिंह, तपस्या में संलग्न, जहाँ हाथी अपने को कुचल डालते हैं प्रेम की प्रचण्ड वासना के स्वेद में चतुर्मुख ऐसे स्थान में कठोर तपस्या किया करते थे कि सीधे-सादे ग्रामीण लोग उन्हें बर्बर सिंहकी उपमा देने लगे थे । हमारा श्लोक ९९ भी सर्वसाधुके जीवनको कठोर यौगिक नियम पालन में चित्रित करता है । दोनों ही वर्णन एक ही योगी के बारेमें हमारा समाधान करते हैं जो निष्ठापूर्वक तपश्चर्याओं में असामान्य कठोरता और उग्रता के साथ लगा हुआ है । क्या ऐसा कोई प्रमाण है कि ये चतुर्मुख बनाम वृषभनन्दि सर्वसाधु भी कहे जाते रहे हैं ? वस्तुतः तत्त्वार्थवृत्तिकी प्रशस्तिके अन्तिम श्लोक में उनका वृषभनन्दि नाम पढ़ लेना असम्भव नहीं : शिष्यों भास्करनन्दि - नाम-विबुधस्तस्याभवत्तत्ववित्, तेनाकारि सुखादि-बोध-विषया तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् । इस प्रकार वृषभनन्दि विपरीत क्रम में पहचाना जा सकता है । क्योंकि इस प्रशस्ति में मुख्य नामोंका पृथक-पृथक उल्लेख हुआ है, इसमें किसी छिपे हुए नामको निकालना एक बहुत दूरका विचार मालूम पड़ता है । जो भी हो, सर्वसाधु एक ज्यादा लोकप्रिय उपनाम प्रतीत होता है, जैसा कि चतुर्मुख है, और वृषभनन्दि उनका ज्यादा अधिकृत या मान्य नाम प्रतीत होता है । यह भी सम्भव है कि वृषभनन्दि साधारण लोगों में चतुर्मुख नामसे लोकप्रिय थे, और तपस्वियों में सर्वसाधुके नामसे वे हर हालत में निश्चित रूपसे सर्वसाधु, सबके साधु होने चाहिए। यद्यपि एक ही यती के बारेमें उपरोक्त ये दोनों वर्णन काफी समाधान प्रस्तुत करते हैं, फिर भी मुझे पूरा विश्वास नहीं है कि वृषभनन्दि बनाम सर्वसाधु मात्र इतने ही प्रमाणसे प्रमाणित किये जा सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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