________________
वा. १ में निम्नलिखित ढंगसे चित्रित की गयो है :
मूल-संघ
उमास्वामी
गुणनन्दि
देवेन्द्र सैद्धान्तिक
नन्दिगण
देशीगण वक्रगच्छ चतुर्मुख (वृषभनन्दि)
गोपनन्दि
माधनन्दि
मेघचन्द्र कल्याणकीति बालचन्द्र
प्रभाचन्द्र, दामनन्दि गुणचन्द्र, मलधारि जिनचन्द्र, देवेन्द्र वासचन्द्र, यश कीर्ति
शुभकीति
चतुर्मुखदेव, जो वृषभनन्दिके नामसे भी जाने जाते हैं, चतुर्मुख इसलिए कहलाये, क्योंकि उन्होंने चारों दिशाओंकी तरफ मुख करके आठ दिनका उपवास किया था। शिलालेख सं. ५५ (६९) और सं. ४९२ में उनका वर्णन समान है, जो मोटे तौरपर निम्नलिखित है :
योगियों के स्वामी, चतुर्मुख का महिमागान हो, वन-जात है उनका हृदय,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org