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________________ ३३ १०९३ ई० होयसळ राजाने गोपनन्दिको एक गाँव दानमें दिया था । यह पता नहीं चलता कि उस समय उनकी उम्र क्या थी, और न यही कि तबसे वे कितने दिन तक जीवित रहे । निस्सन्देह, वे उस कालमें विद्यमान थे । प्रभाचन्द्र के बारेमें श्रवणबेळगोळ शिलालेख सं० ५५ (६९) में, जिनका उल्लेख हुआ है, पं. महेन्द्रकुमार शास्त्रीका मत है कि वे प्रमेयकमलमार्तण्ड, तत्त्वार्थवृत्ति पद-विवरण ( सर्वार्थसिद्धिकी टीका ) आदिके रचयिता थे । इस आधारपर पण्डितजी उनका काल ९८० -१०६५ ई.. निर्देश करते हैं । अगर ऐसा है तो १०६५ में प्रभाचन्द्रकी उम्र ८५ वर्षकी हुई, और इसका अर्थ हुआ कि वे गोपनन्दिके काफी वयस्क समकालीन हुए, जो १०९३ ई.में भी कार्यशील थे । इस शिलालेखके बारेमें जो प्रमाण हैं, उनके अनुसार ११०० ई. के आसपास इसका निर्माण होना चाहिए, जिस समय जिनचन्द्र सिद्धान्त, साहित्य और वाक्कलामें महात् प्रतिष्ठित और मुनीन्द्र एवं पण्डितदेव के रूपमें सम्मानित थे । इसमें कुछ और भी आचार्योंको पण्डितदेवोंके रूपमें अंकित किया गया है । क्योंकि जिनचन्द्रको पण्डितदेव कहा गया है, इसलिए तब तक समाज में उनका कुछ योगदान हो चुकना चाहिए । इसका अर्थ है कि ११०० ई. तक उन्होंने कुछ ऐसे सक्रिय शिष्योंका निर्माण कर दिया था, जिन्होंने उन्हें. पण्डितदेव के रूप में प्रतिष्ठित किया । वे गोपनन्दिके कनिष्ठ समकालीन थे, इसलिए उनका काल उनके करीब, अर्थात् चालीसी या पचासी में होना चाहिए | एक ऐसे धार्मिक शिलालेखमें उनके वर्णनके बारेमें यह काफी विचित्र-सा लगता है कि उन्हें एक ऐसे रूपवान् तपस्वीके रूपमें चित्रित किया गया है, जो गीतों, संगीत और नृत्यों तकमें लोकप्रिय हुआ है । बीसी और तीसी में अगर वे एक नवयुवा पण्डित थे, तो उनके प्रदाताओंने इस कीर्तिस्तम्भपर उनके शारीरिक सौन्दर्य और लोकप्रियता के बारे में कभी न खुदवाया होता, भले ही वे कितने ही महान् पण्डित क्यों न होते । यह एक विरोधाभासी लगनेवाला प्रमाण है कि उस समय वे अपने अतीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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