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________________ २९ उपरोक्त वर्णित सभी जिनचन्द्र पहली आवश्यक शर्तको पूरा नहीं कर सकते । दूसरे तथ्य के सम्बन्ध में, केवल पहले तीन जिनचन्द्र ही पूरे उतरते हैं, और बाकीपर विचार ही नहीं किया गया। तीसरे तथ्य के आधारपर दूसरे जिनचन्द्र जिनका सम्बन्ध श्वेताम्बर खरतरगच्छसे है, पात्र ही नहीं ठहरते हैं । अब पहले और तीसरे जिनचन्द्र बच रहते हैं । उन दोनों को ही भट्टारकी पदवी प्राप्त नहीं थी । ९५० ई. में विद्यमान पहले जिनचन्द्र कर्नाटक कवि हैं । और वे सोमदेव के समकालीन हैं । क्या ये जिनचन्द्र हमारे ग्रन्थकारके गुरु हो सकते हैं । भास्करनन्दिको नेमिचन्द्र, चामुण्डराय और अमितगतिका या तो समकालीन या कुछ अग्रज समकालीन होना चाहिए । यह असम्भाव्य है, इसलिए इन्हें भी छोड़ दिया गया । अब तीसरे जिनचन्द्र ही जो श्रवणबेळगोळ शिलालेख सं. ५५ ( ६९ ) में निर्दिष्ट हुए हैं, हमारे ग्रन्थकारके एकमात्र सम्भाव्य गुरु बच रहते हैं । अब हम यह छानबीन करेंगे कि इन जिनचन्द्रको हमारे भास्करानन्दिके गुरुके रूपमें स्वीकार किया जा सकता है क्या, जो भट्टारक पदवीसे जाने जाते थे, और जिनके गुरु सर्वसाधु नामसे सुप्रसिद्ध हैं । सर्वप्रथम, हमें यह देखना है कि श्रवणबेळगोळ शिलालेख में इन तीसरे जिनचन्द्रका कैसा वर्णन मिलता है । दक्षिणमुखी स्तम्भपर यह लेख है : क्या व्याकरण में उनकी तुलना पूज्यपाद से, सर्व समय और तर्कों में भट्ट अकलंकसे, साहित्य में भारवि से होनी चाहिए, वे कवि हैं और गमक महावादी वाग्मिता सम्पन्न हैं । उनकी देह छवि की प्रतिष्ठा गीतों, संगीत, और नृत्यों में, यहाँ और दूसरे स्थानों में है । वे श्री योगी के रूप में सदा अडिग बने रहें, लोग जिनके चरणों की पूजा करते हैं, वे अथक मुनीन्द्र जिनचन्द्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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