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________________ ३) शक संवत् १०२२ (११०० ई.) में निर्मित श्रवणबेळगोळ शिलालेख ५५ ( ६९ ) में संकेतित जिनचन्द्र । ४) शक १३२० ( १३९८ ई.) में निर्मित बक्खलगेरे शिलालेख में निर्दिष्ट जिनचन्द्र । ५) शक १३२० ( १३९८ ई.) में निर्मित विन्ध्यागिरि शिलालेख सं. १०५ ( २५४ ) में उल्लिखित जिनचन्द्र । ६) गोविन्दके 'पुरुषार्थानुशासनम्' (१५वीं शताब्दी ? ) में प्रस्तुत . भट्टारक जिनचन्द्र । ७ ) शुभचन्द्रके शिष्य और मेधावीके गुरु ( १५वीं शताब्दी ) भट्टारक जिनचन्द्र के रूपमें प्रसिद्ध जिनचन्द्र । और भी बहुत-से जिनचन्द्र होने चाहिए, और आधुनिक काल तक लगभग तीस जिनचन्द्रसूरियोंको, डिस्क्रिप्टिव कटलाग ऑफ भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टोट्यूट, वा. १७, पा. ५, पृष्ठ १८२-१८५ में सूचीबद्ध किया गया है। अब, परिचित और अनुमानित तिथिसे, कुछ ऐसे तथ्योंपर विचार करना होगा, ताकि यह पहचाना जा सके कि कौन-से जिनचन्द्र हमारे भास्करनन्दिके गुरु हो सकते हैं : १) हमारे जिनचन्द्र के गुरु सर्वसाधु कहलाते थे। २) भास्करनन्दिका अनुमानित काल ११वीं के अन्त और १२वों शताब्दीके आरम्भमें पड़ता है। इस आधारपर जिनचन्द्रका काल व्यापक रूपसे १०वींके अन्त और ११वीं शताब्दीके बीच कहीं अन्वेषणीय है। ३) भास्करनन्दि दिगम्बर पण्डित हैं, क्योंकि वे अपनी वृत्तिमें पूज्यपाद और विद्यानन्दिको नमन करते हैं, इसलिए, जिनचन्द्र . भी दिगम्बर साधु होने चाहिए । ४) जिनचन्द्र भट्टारक. कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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