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________________ साथ भावनाके चार प्रकारोंके संयोजन द्वारा स्पष्ट रूपसे निर्मित किये गये हैं । सुभाषितसन्दोह अध्याय ७ में, अमितगति चार प्रकारके गुणोंसे मण्डितःमनुष्यके बारेमें कहते हैं, जब कि यह विभाग ध्यानसे जरा भी सम्बन्धित नहीं है। 'श्रावकाचार' १५:२४-२९ में, वे एक अभीप्सुके लिए अनेक उत्तम गुणोंका वर्णन करते हैं, जिनमें दशधर्म ही ज्यादातर पाये जाते हैं । यद्यपि उनमें किसी सुनिश्चित रूप में उन्हें प्रस्तुत करनेकी प्रवृत्तिको या किसी विशेष प्रयत्न को ढूँढ़ लेना अत्यन्त कठिन काम है । 'योगशास्त्र' और 'ज्ञानार्णव' बारह भावनाकी व्याख्या करते हैं । दशधर्म धर्म-भावनाके अन्तर्गत वर्णन किये गये हैं। योगशास्त्र १:१५ कहता है कि योगमें ज्ञान, दर्शन और चारित्रका आधान होता है। इसके ४:११७+ १२१ श्लोक धर्म्यध्यानको ध्यान करनेवालेके लिए विधि-नियमों का वर्णन और गणना करते हैं, जो हैं, मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य । इसके ४:११०-११२में हेमचन्द्र समत्वकी पूर्वापेक्षित दशा पर जोर देते हैं, जिसके बिना, ऐसा कहा जाता है कि, ध्यान प्राप्त नहीं किया जा सकता। शुभचन्द्र अपने 'ज्ञानार्णव' के अध्याय ४ और ५ में ध्यानीकी प्रकृतिका सामा. न्य वर्णन करते हैं। ४थे अध्याय में ध्यानीके लिए त्रिरत्नोंको धारण करनेकी सामर्थ्य मूल आवश्यकताके रूपमें वर्णित हुई है। अगला अध्याय ध्यानीका प्रशस्तिगान है, जिसमें ध्यानीके लिए वांछित गुणोंका, वैराग्य आदि और मैत्री आदि सहित, वर्णन किया गया है । 'ज्ञानार्णव' २७:४१४ श्लोक धर्म्यध्यानके लिए पूर्वापेक्षित अभ्यासके रूपमें उदाहरणके लिए मैत्री आदि चार प्रकारकी भावनाओंका वर्णन करते हैं । तत्त्वार्थसूत्र ७: ९-१२ महाव्रतोंके पालनके उन्नयनके सन्दर्भमें अनेक भावनाओंको प्रस्तुत करता है, जो ७:११ में सूचीबद्ध मैत्री आदि चारको छोड़कर हैं और ऊपर उद्धृत दो महान् ध्यानग्रन्थोंमें बारह भावनाओंमें संग्रहीत हैं। उनमें मैत्री आदि सभी धर्म्यध्यानके लिए भावनाओंके रूपमें परिगणित की गयी हैं, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। इस प्रकार, 'धर्म्य' का स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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