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ज्योतिष लक्षणे-वास्तु मुहूर्तो ]
५८५ (३-४-५ ) सूत्रपात-शिलान्यास-खुरानां मुहूतों
प्रासादनी जगाती जेटली उंची लेवानी होय तेटली लेइ ते उपर सूत्र छांटी प्रासादनुं आधार स्थल चिन्हित करवू. प्रथम रिक्शुद्धि करवी अने पछी शुभ समयमां सूत्र पात करवो, सूत्रपातनां नक्षत्रो नीचे प्रमाणे लेवां.
सूत्रस्य सिद्धिर्वस्सुनाथ हस्तमैत्र स्थिर स्वाति शतक्ष पुष्यैः । न्यासः शिलायाः कर पुष्य मार्ग
पौष्ण ध्रुवेषु श्रवणे च शस्तः ॥ ७४७॥ भा०टी०-धनिष्ठा, हस्त, अनुराधा, रोहिणि, उत्तराफाल्गु. नि, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, स्वाति, शतभिषा अने पुष्य, आ नक्षत्रोमां सूत्रपात करवाथी कार्य सफल थाय छे अने हस्त पुष्य मार्गशीर्ष रेवती रोहिणी उत्तरा त्रणे अने श्रवणमा शिलान्यास करवाथी ते वास्तु निर्विघ्नपणे पूर्ण थाय छे. खुरो स्थापनामां पण शिलान्यासोक्त नक्षत्रो लेखां, मूत्रपात, शिलान्यास, खुरस्थापनमा अशुभ योगो, क्षीणचन्द्र, मंगलवार, वर्ण्य तिथिओ अने भद्रा करणनो त्याग करवो, शुभलग्नमां, लग्नना अभावमा कुलिकादि वार दोषरहित शुभ चोघडियामां पण सूत्रपातादि करी शकाय छे. __ए उपरांत सूत्रपात शिलान्यासादिनां मुहूतोंमां पञ्चांग शुद्धि जोवी, कारकनानामथी चन्द्रबल जोवू. मलमास, गुरु-शुक्र-चन्द्रास्त, भद्राकरण, व्यतीपात वैधृतादि दुष्ट योगो, आदि अशुभ निमित्तो अवश्य टालवा, लग्मशुद्धि मले तो विशेष श्रेष्ठ अन्यथा भूम्यारंभ मुहूर्वोक्त वार दोष टाली शुभ समयमां आ सर्वे कार्यों करी लेवां.
शिलान्यास मुहूर्तमा उक्तश्लोकमा जणावेल हस्तादि ९ नक्षत्रो लेबां, तेना अभावमा गृहनिर्मागमा जणावेल मृदु लघु आदि गणोक्त
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