________________
५८४
[कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे गृह अने देवालयना निर्माण मुहूर्तमां भेद नथी.
उपर गृह निर्माणने अंगे जे जे वातो कहेवाइ छे ते बघी देवालयना आरंभ मुहुर्तमां पण जोवानी छे, खातमा मात्र गृह अने देवालयना खातमां दिशा जुदी पडे छे के कूर्मशिलान्यास समयमां देवालयमा कूर्मचक्र जोवानुं अधिक छे, बीजु कंइ विशेषपणुं नथी, ए विषे व्यवहारप्रकाश लखे छे-- गृहेषु यो विधिः कार्यों, निवेशन-प्रवेशयोः। स एव विदुषा कार्यों, देवतायतनेष्वपि ॥७४६॥
भा०टी०-गृह संबन्धी निवेशन-प्रारंभकार्यमां अने प्रवेश कार्यमा जे विधि-मुहूर्त संबन्धी जे विधान कर्यु छे, तेज विधान विद्वाने देवालयना प्रारंभ अने प्रवेशना मुहूतोंमां पण करवू.
(२) कूर्मन्यास मुहूर्त-- खातमुहूर्त पछी गृहमां पायारोपर्नु मुहूर्त करावे छे, · पण देवालयमां भूम्यारंभ पछी कूर्मन्यासन मुहूर्त आवे छे, पूर्वकालमां खात पछी प्रासादना मध्यभागे नीचे केवल कूर्मन्यास करातो हतो पण मध्यकालीन शिल्पग्रन्थोमां कूर्मयुक्त शिलास्थापन- विधान करेल होइ आजकाल कूर्माङ्कित शिलास्थापननी प्रवृत्ति चाले छे अने कूर्मशिला स्थापन, मुहूर्त जोवाय छे.
कूर्मन्यास अथवा कूर्मशिलान्यासना मुहूर्तमा चन्द्रवल उपरान्त गृहारंभमां जणावी तेवी पंचांग शुद्धि होवी जोइये, अने कूर्मचक्रद्वारा वूमनो निवास जलमां जाणी मुहूर्त आपQ जोइये-आ मुहूर्तमां वृषवास्तुचक्र, के भूमि सूती जागती, आदि आरंभना समयनी बीजी वातो जोवानी आवश्यकता नथी, मात्र कूर्मचक्र जोइने कर्मन्यास करवा जोइये.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org