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________________ लग्न-लक्षणम् ] अमृतकिरणस्त्वमृत-भवस्तरलमखिलं च तद्वत्स्यात् । अमृतमयं तत्तस्मादभ्यधिकं त्वन्यखेटबलात् ॥६९५।। तुहिनकरो जगतां यत् तद्वच्च तबलं त्वखिलम् । तन्महिमानं व्याचष्टे गुणरूपं निखिलजन्तूनाम् ॥६९६।। बलवानखिलमृगाणां, हरिरिव खचरबलानां च चन्द्रबलम् । हिमकिरणे बलिनि सति, सर्वे बलिनो वियच्चरा नित्यम् ॥ ६९७ ॥ अभ्यधिकं चन्द्रबलं, त्वबलं ताराग्रहोद्भवं निखिलम् । हिमकिरणयलार्धादपि, नो तुल्यं ग्रहबलं सर्वम् ॥६९८॥ भाष्टी०-शुक्लपक्षमा चन्द्र बलवान् होय छे अने कृष्णपक्षमां तारा बलवती होय छे, शुक्लपक्षमा चन्द्र बलनी प्रधानता होय छे तेज प्रमाणे कृष्णपक्षमां तारा बलन प्राधान्य जाणवु. चन्द्र अमृतजन्मा छे तेनुं सर्व बल पण तेने अनुरूप ज होय छे, चन्द्रबल गुणरूप चन्द्रना महिमाने सर्व प्राणियो आगल प्रकट करे छे, जेम सर्व वनचर पशुगणोमा सिंह बलवान् होय छे तेम सर्वग्रहबलमां चन्द्रबल जाणवू, चन्द्र बलवान् होय छे त्यारे ग्रहो हमेशां बलवान होय छे. ताराबल अने सर्व ग्रहबल करतां चन्द्रबल अधिक होय छ, वास्तवमा वलीचन्द्रना अर्धवल तुल्य पण सर्वग्रहोर्नु बल होतुं नथी. चन्द्रबल-ताराबलनो समय विभाग ज्योतिर्निबन्धेतिथयः पञ्च शुक्लाद्या-श्चन्द्रस्तारायुतो बली। तनुत्वाद्वर्तमानाऽपि, प्रौढस्त्रीको यथा पतिः ॥६९९।। परतश्चन्द्रमा एव, यावत्कृष्णाष्टमीदलम् ।। प्रौढत्वात् पुरुषो यद्वत्, स्वतन्त्रःस्यादिना स्त्रियम् ॥७००॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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