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[ कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे त्रीजो सातमो छठो बीजो नवमो अग्यारमो पांचमो दशमो (१२।३।५।६।७।९।१०१११) मो चन्द्र शुक्लपक्षमा शुभदायक छे, अने कृष्णपक्षमां २।५।९ मा सिवाय उक्त स्थानीय चन्द्र गोचरथी शुभ होय छे.
जन्मभमनुजन्मक्ष, त्रिजन्म नेष्टमखिलकार्येषु । संपत्तारा शुभदा, विपदाख्या विपत्प्रदा तारा ॥६९१।। क्षेमाख्या क्षेमकरी, प्रतिकूला प्रत्यरिस्तारा । साधनभं साधनदं, नैधनभं नैधनं नृणाम् ॥६९२॥ मैत्रीकरणं मित्रभ-मतिमैत्रं परममैत्रःम् । एवं विचार्य सततं, बलाबलं दैववित् कथयेत् ॥६९३॥
भाष्टी०-जेमां जेनो जन्म थयो होय ते तेनुं जन्म नक्षत्र, जन्म नक्षत्र तारामां त्रण आवे छे, १ लुं १० मुं १९ मुं, आ त्रणेय जन्म ताराओ सर्व कार्योमा अनिष्ट होय छे, जन्म नक्षत्रथी बीजूं नक्षत्र संपत्तारा जे शुभ छ, जन्मथी त्रीजुं विपत्तारा विपत्तिदायक छे. जन्मथी चोथु नक्षत्र क्षेमातारा छे ते कल्याणकरी छे, पांचमी प्रत्यरितारा प्रतिकूलता आपनारी, छठी साधना तारा अनुकूल साधन आपनारी, सातमी तारा नैधना अथवा यमा छे जे मनुष्यने मरण आपनारी छे, आठमी मैत्रीतारा जे मित्रता करावनारी अने नवमी अतिमैत्री जे परममित्रताकारक छे, एज प्रमाणे दशथी अढार सुधी अने ओगणीशथी सत्तावीश सुधीना ९१९ नक्षत्रोमां जन्मादि नव नव ताराओ समजवी. आम बधो विचार करी ज्योतिषीए ताराओनुं बलाबल कहेषु, सितपक्षे हिमकिरणो, बलवान् कृष्णेऽपि बलवती तारा। शशिबलवत् प्राधान्यं, शुक्ले कृष्णे च तारकायाश्च ॥६९४॥
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