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[कल्याणकलिका-प्रथमबण्डे अन्धयोगकृतं दोषं, शुभयोगो निहन्ति वै। काणयोगकृतं दोषं, हन्ति कल्याणसंज्ञकः ॥५४९॥ पंगुयोग निहन्त्याशु, योगो वै वर्धमानकः। सुधायोगो निहन्त्याशु, योगं बधिरसंज्ञकम् ॥५५०॥ महायोगो निहन्त्याशु, योगं तु राक्षसाह्वयम् । दग्धयोगं निहन्त्याशु, महायोगो महाबलः ।।५५१॥ ग्रहजन्मकृतं दोषं, पूर्णयोगो निहन्ति वै। गदायोगं निहन्त्याशु, शंखयोगो महाबलः ॥५५२।।
भा०टी०-उत्पातयोगना दोषने वारयोग हणे छे, मृत्युयोगने महाबली श्रेष्ठयोग हणे छे, अंधयोगना दोषने शुभयोग हणे छे, काणयोगना दोषने कल्याणयोग हणे छे, पंगुयोगना दोषने वर्षमानयोग दूर करे छे, बधिरयोगने सुधा (पीयूष) योग दूर करे छे, राक्षसने महायोग हणे छे, दग्धयोगने पण महायोग प्रभावहीन करे छे, ग्रहजन्मनक्षत्रना दोषने पूर्णयोग दूर करे छे अने गदायोगकृत दोषने शंखयोग मटाडी दे छे.
अग्निजिह्वद्रयं योगं, पनयोगो निहन्ति वै। विषयोग निहन्त्याशु, योगश्चानन्दसंज्ञकः ॥५५३॥ भान्तरालकृतं दोषं, सिद्धियोगो निहन्ति वै। योगान्तरालक दोष, हन्ति सिद्धातिथिः स्वयम् ॥५४॥ महाशूलाह्वयं दोषं, सिद्धियोगो निहन्ति वै। दुष्टयोगं निहन्त्याशु, योगः पीयूषसंज्ञक ॥५५५॥ महाकुलिकयोगं तु, वापीयोगो निहन्ति वै। हालाहलाह्वयं नामा-ऽमृतयोगो निहन्ति वै ॥५५६॥
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