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________________ જ૮૨ [कल्याण-कलिका-प्रथमनण्डे थी नुकशान, अग्निथी नुकशान, राजाथी नुकशान, चौरथी नुकशान, मृत्युभय, रोगभय, वीजलीना भय, कलह, धनहानि, आम शून्य एक आदि दशयोगोनुं आ फल छे, माटे विवाहमा तो विद्वानोए दशयोगनो सदा त्याग ज करवो । ___ दश योगनो परिहार-ज्योतिःसागरमायोगाङ्के विषमे सैके, समे स वसुलोचने । दलीकृतेऽश्विनी पूर्व, दशयोगमुदाहृतम् ॥३६१॥ दशयोगे महाचक्रे, प्रमादाद्यदि विध्यते । क्रूरैः सौम्यग्रहैर्वापि, दम्पत्योरेकनाशनम् ॥३६२।। भा०टी०-दश योगनो अंक विषम होय तो तेमां १ जोडवो अने सम होय तो तेमां २८ जोडवा, पछी तेने अर्ध करतां जे अंक रहे ते अश्विनी आदि नक्षत्र जाणवू, पछी १४ आडी रेखाओ खेची प्रत्येक रेखाग्रे आवेल नक्षत्रथी मांडीने अभिजित सहित २८ नक्षत्रो लखवां अने जे जे ग्रह जे जे नक्षत्र उपर होय ते ते ग्रह त्या लववो, चन्द्र नक्षत्र जे रेखा उपर होय ते रेखाना बीजा छेडा उपर आवेल नक्षत्र उपर क्रूर या सौम्य ग्रह होय अने चन्द्राधिष्ठित नक्षत्रनो वेध करतो होय तो ते नक्षत्रमा विवाह करवाथी पति पत्नीमांथी कोड़ एकनुं मरण थाय, पण ते नक्षत्रनो ग्रह वेध न करतो होय तो ते दशयोगकारक नथी। भारद्वाज दशयोग दोषोनो बीजो परिहार कहे छगुरौ लग्नाधिपे शुक्र, सवीर्ये लग्नकेन्द्रगे। दशदोषा विनश्यन्ति, यथोग्नौ तूलराशयः ॥३६३।। भा०टी०-गुरु लग्नपति थइ लग्नमां या केन्द्रमां होय अथवा शुक्र बलवान थइ लग्न अथवा केन्द्रमा रहेल होय तो दशयोगना दोषनो नाश करे छे. जेम अग्निमां तुलना ढगला बलीने भस्म थाय छे तेम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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