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________________ नक्षत्र-लक्षणम् ४८३ भुनि पतति जनाना, मंगलध्वंसनाय, गुणगणशतसंधैरप्यवार्योऽग्निकोपः ॥३५७। भा०टी०-सूर्य चन्द्रना एकागल द्रष्टिपातना योगथी भूमि उपर अग्निमयशरीरधारी अग्निज्वालाओने वमतो सेंकडो गुणो दडे पण न रोकाय एको मनुष्योना आरब्ध मंगल कार्योना नाश माटे अग्नि कोप उतरे छे.। ___ राम मते दश योग दोषशशाङ्कसूर्यःयुते भशेषे, खं भू युगाङ्कानिदशेशतिथ्यः। नागेन्दवोलेन्दुमिता नग्वाश्चद् , भवन्ति चैते दशयोगसंज्ञाः ॥३५८॥ भाण्टी०-सूर्य नक्षत्र तथा चन्द्र नक्षत्रनी अश्विनीथी गणना करतां जे संख्या आवे ते बंने संख्यांकोने जोडीने २७ नो भाग देवो शेष ०।१४।६।१०।११।१५।१८।१९।२०। आ पैकीनो अंक वघे तो दशयोग नामनी दोष जाणवो, आ सिवायनो शेष अंक आवे तो दशयोग नथी ए अर्थात् समजवानुं छे. । दशयोग दोषनो विषयविवाहादौ प्रतिष्ठायां, व्रते पुंसवने तथा । कर्णवेधे च चूडायां, दशयोगं विवर्जयेत् ॥३५९॥ भा०टी०-विवाह आदि कार्योमां, प्रतिष्ठामां, व्रतग्रहणमां पुंसवनमा, कर्णवेधमां अने चूलाकर्ममा, दशयोगने वर्जयो । दशयोगनुं फल लल्ल कहे छे-- मरुन्मेघाग्निभूपाल-चौरमृत्युमजोऽशनिः । कलिहानिर्दशोद्वाहे, दोषास्त्याज्या सदा बुधैः । ३६०॥ भा०टी०-दशयोगोनुं अनुक्रमे फल- वायुथी नुकशान, मेघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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